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Indian Administration

एयर इंडिया दुनिया भर की सैर करके लौट के वापस अपने घर पर आई -टाटा को नफ़ा होगा या नुक़सान ?

एयर इंडिया दुनिया भर की सैर करके लौट के वापस अपने घर पर आई -टाटा को नफ़ा होगा या नुक़सान ?

नई दिल्ली : लगभग चालीस सालों से सरकार के लिए सरदर्द बनी AIR INDIA आख़िरकार टाटा के पास वापस चली गई, अठारा हज़ार करोड़ की ऊँची बोली लगा कर नीलामी से इस कम्पनी को TATA ग्रूप ने अपने बेड़े में मिला लिया, ये देखने में आया है कि जब भी कोई PSUS नीलाम होती है तो सरकार की आलोचनाएँ और और सरकार के कार्य करने वाले प्रबंधन को सवालों के घेरे में लाया जाता है, जम कर नुकता चीनी होती है, कुछ दानिश्वर सरकार के कदम को सही बताते हैं तो कुछ ग़लत बताते हैं, होना भी चाहिएँ इसी का नाम जम्हूरियत है।

AIR INDIA की नीलामी के बाद से हिंदुस्तान की जनता में एक बड़ी ख़ुशी की लहर सोशल मीडिया के गलियारों में देखी जा सकती है, लोग अपने जज़्बात टाटा ग्रूप और AIR INDIA से जोड़ कर उसे व्यक्त कर रहे हैं मानो पूरा हिंदुस्तान सरकार के इस फ़ैसले की सराहना कर रहा है , मेरे ख़याल से अगर कोई दूसरा व्यापारिक समूह AIR INDIA को ख़रीदता तो शायद ही ये मुमकिन होता, आप मेरे इस इशारे को अम्बानी या अडानी से ना जोड़ें प्लीज़, पर टाटा तो टाटा ही है।

जब भी हिंदुस्तान पर कोई संकट आया है टाटा ग्रूप ने हमेशा हिंदुस्तान के काँधे से कांधा मिलाया है, शायद इसी लिए हिंदुस्तान की जनता और टाटा के बीच ना सिर्फ़ व्यापार का रिश्ता है बल्कि एक जज़्बाती जुड़ाव भी है, 1928 में एक वक्त ऐसा भी आया था जब टाटा समूह अपनी जमशेदपुर टाटा की बड़ी कम्पनी में मज़दूरों की हड़ताल से गुजर रहा था कम्पनी की लाख कोशिसों के बाद भी मज़दूरों और टाटा ग्रूप के बीच दूर दूर तक कोई समझोता होता नज़र नही आ रहा था उस समय नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने आगे बड़ कर टाटा ग्रूप और मज़दूरों के बीच समझौता कराया था।

टाटा ग्रूप के लिए AIR INDIA नफ़े का सौदा है या नुक़सान का ? ये तो आगे चल कर ही पता चलेगा, ऐयर लायेंस का बिज़्नेस घाटे का है या नुक़सान का इसको समझने की ज़रूरत है, दुनियाँ भर में बहुत कम ही सरकारें इस बिज़्नेस को चलाती होंगी ? ऐयर लायेंस के ईंधन से ले कर उसके रखरखाव रूट के खर्चे स्टाफ़ की तनख़्वाह और उस पर इकोनोमी क्लास का सफ़र कराना, विमान में देरी होने पर जुर्माना भरना,ऐयर स्पेस के भुगतान से ले कर ऐयरपोर्ट पर विमान को पार्क करना और ना जाने कितने ही टेक्निकल खर्चे ऐसे हैं जिन्हें गिनाना शायद मुश्किल होगा, आम भाषा में अगर हम कहें तो हिंदुस्तान के अंदर तो सरकारी ट्रांसपोर्ट वाली बसें ही घाटे दिखाने में पहले नम्बर पर क़ायम हैं ये तो फिर भी ऐयर लायेंस हैं, शायद इसी लिए जानकारों की नज़र में ऐयर लायेंस जैसे सफ़ेद हाथी को चलाना सरकारों के बस की बात नही है, ये काम तो ज़्यादातर वो ही महानुभव कर सकते हैं जिनके पास बे इंतहा पैसा हो , जो अपने मुल्क से प्यार करते हों और ब्यापारी भी हों, या फिर जिन्हें अपने काले धन को सफ़ेद करना हो ? लेकिन सभी ऐसा करते हों ये ज़रूरी नही है बहुत से अच्छे साफ़ सुथरी छबी के लोग भी इस ब्यापार में शामिल हैं जिसमें एक नाम टाटा समूह का भी है जो हमेशा जब भी देश विकट परिस्थियों में होता है तो आगे आ कर इसकी मदद करता है

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