नई दिल्ली : अंडर कवर रिपोर्टर की ख़ास रिपोर्ट : एक कहावत है कि घर में जब दो बर्तन खड़कते हैं तो उनकी आवाज़ बाहर तक जाती है, जिससे बाहर के लोगों को पता चल जाता है कि पड़ोस में कुछ तो हुआ है,ऐसी ही एक खनक बड़े मंत्रालय से निकल कर हम तक पहुँची है, लेकिन इस बार ये खनक ना ही बर्तनों की है , और ना ही इनकी ख़नक किसी घर से निकली है, बल्कि ये कोहराम EESL के दो अफसरानो के बीच हुआ है, और इस शंखनाद की आवाज़ इतनी बुलंद थी कि ऊर्जा मंत्रालय को दख़ल देना पड़ा।ऊर्जा सेक्टर के सभी साथी समझ गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं, हम बात कर रहे है चार पावर सेक्टर POWERGRID, NTPC, REC, POWER FINANCE के फंड से चलने वाली EESL की ।
EESL में सन 2013 से MD पद की कमांड संभाल रहे सौरभ कुमार ने EESL से इस्तीफ़ा दे दिया है,एक अख़बार ने सौरभ कुमार से गुफ़्तगू का हवाला देते हुए लिखा है कि सौरभ कुमार ने अख़बार को बताया कि EESL में उन्हें घुटन महसूस हो रही थी, क्यूँकि रोज़ाना होने वाले कामों से उनको दूर रखा जा रहा था, उनको ये महसूस होने लगा था कि EESL में उनका किरदार नाम मात्र का ही रह गया है। साथ ही मैन स्ट्रीम से हट कर उन्हें दूसरे कामों में उलझा दिया गया था, इस वजह से उन्होंने अपना इस्तीफ़ा देना बेहतर समझा । लेकिन हमारे ख़ुफ़िया नवीश फ़रमाते हैं दरसल में हक़ीक़त ये नहीं है अभी तो सिर्फ़ एक ही इस्तीफ़ा हुआ है , शायद जल्दी ही दूसरा इस्तीफ़ा भी हो जाए ? इस मामले में हमारे ख़ूफ़िया नवीश ने पूरी तपतीस की , पता ये चला कि इस पूरी घटनाक्रम के दो पहलू हैं (१)पहला प्रबंधन की नियुक्ति (२)दूसरा प्रबंधको के कार्य करने के तरीक़ों में असमानता।
सबसे पहले हम नम्बर एक पहलू पर की बात करते हैं । आपको याद दिला दें कि पिछले साल ही ऊर्जा मंत्रालय ने सौरभ कुमार की जगह नए प्रबंधन की नियुक्ति की थी और सौरव कुमार को EESL की Executive Vice Chairperson की ज़िम्मेदारी दे दी गई थी,रस्साकसी की शुरुआत बस यहीं से होना शुरू हो गई थी, (पोर्टल इस बात की पुष्टि नहीं करता कि ये बात कितनी सच है, या पूरी तरह से झूठ है ) ऊर्जा सेक्टर के एक्स्पर्ट्स की ऐसी राय है कुछ एक्स्पर्ट्स फ़रमाते हैं कि वेदांता से निकाले गए और कुछ एक्स्पर्ट्स फ़रमाते हैं कि वेदांता से लम्बे विश्राम विराम कर रहे अधिकारी को ऊर्जा सेक्टर के एक बड़े अफ़सर की सिफ़ारिश पर मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया गया था । हमारे सूत्रों ने सिफ़ारिश करने वाले अफ़सर से भी इस बाबत राबता क़ायम किया और ये समझने की कोशिश की, कि क्या वाक़ई में अफ़सर ने इस तरह की कोई सिफ़ारिश की थी ? और अगर की थी तो क्या उनको इसकी जानकारी थी कि जिसकी सिफ़ारिश की जा रही है उसकी पिछली कार्यप्रणाली कैसी है ? इस मामले में हमें बताया गया कि जो भी नियुक्ति होती है वह मंत्रालय द्वारा की जाती है | हमने इस बात पर उनसे बहस करना मुनासिब नहीं समझा क्यूँकि हम सभी जानते हैं कि PSUS या बोर्ड में नियुक्ति के नियम क्या हैं ? इसमें मेरी और आपकी अलग अलग राय हो सकती है लेकिन असल बात तो यह है जो जीता वही सिकंदर। हालाँकि कई बार सिफ़ारिशें अच्छी भी होतीं है लेकिन हर सिफ़ारिश अच्छी हो ये ज़रूरी नही होता। हमारा ये मत है की इस तरह की सिफ़ारिशों से अफ़सरों को भी परहेज़ करना चाहिएँ क्यूँकि सिफ़ारिश (लॉबी / ग्रूप) की जन्ननी है जिससे हमेशा नुक़सान होता है ।
अब हम दूसरे नम्बर के पहलू पर नज़रें सानी करें तो मालूम ये चला कि नए प्रबंधन की नियुक्ति के बाद से EESL में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था, दो बड़े प्रबंधन की कार्यप्रणाली एक दूसरे से टकरा रही थी एक प्रबंधन जो लम्बे समय से कार्य कर रहा था शायद उसकी कार्यप्रणाली नव नवनियुक्त प्रबंधन को पसंद नहीं आ रही थी, और वर्ष २०१३ से कार्यरत अफ़सर की कार्यप्रणाली नए अफ़सर को पसंद नहीं आ रही थी दोनो एक दूसरे के अक्स हो गए थे हालाँकि ये बड़ा मुद्दा नहीं था अगर दोनो एक दूसरे से राय आम बना कर चलते तो इस मसले का हल भी निकल सकता था पर उफ़! दोनो कि तरफ़ से एक दूसरे के ख़िलाफ़ मंत्रालय में शिकायत बदस्तूर की जा रही थी जिसके कारण मंत्रालय में दोनो की शिकायतों का एक अम्बार खड़ा हो गया| था, मंत्रालय द्वारा दोनों अफसरानो को बहुत समझाया बुझाया गया लेकिन दोनो एक दूसरे के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़े थे, कोई पीछे हटने को तय्यार नही था मानो ‘ज़ोर लगा के हाईशा ‘ चल रहा हो, और आप सब जानते हैं कि जब ज़ोर लगा के हाईशा होता है तो अंत में क्या होता है ? दानिश्वर फ़रमाते हैं कि अंत अच्छा नहीं होता है ,और वही हुआ वित्तीय संकट से गुजर रही कम्पनी को भविष्य में शायद इस इस्तीफ़े की क़ीमत चुकाना पड़े ? ऐसी ऊर्जा सेक्टर के एक्स्पर्ट्स की राय है।
मंत्रालय ने आख़िरकार दोनो से इस्तीफ़ा देने और EESL के प्रबंधन, निदेशक मंडल और स्टैक पैटर्न के ढाँचे में बदलाव का मन बना लिया , प्रबंधन में बदले हुए ढाँचे के मुताबिक़ अब केवल CEO की नियुक्ति की जाएगी जिसकी देख रेख में सारे काम होंगे, निदेशक मंडल में राजीव शर्मा की जगह Powergrid के CMD केश्रीकांत को निदेशक मंडल की कमांड, स्टैक पैटर्न में REC और PFC की हिस्सेदारी को कम करके POWERGRID और NTPC की हिस्सेदारी बड़ा दी जाएगी , अब देखना ये होगा की कितनी जल्दी मंत्रालय इस कम्पनी को ज़िंदा रखने के लिए अपनी बनाई या कहें कि सुझाई हुई नीति को अमल में लाता है , क्यूँकि EESL को प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट पूरा करना है और इसके अलावा आने वाले दिनों में बिजली से चलने वाले वाहनो को संचालित करने में भी EESL की भूमिका विशेष होगी।














































