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Indian Administration

क्या कनौजिया की गिरफ्तारी मीडिया अभिव्यक्ति की आज़ादी पर आघात है?

क्या कनौजिया की गिरफ्तारी मीडिया अभिव्यक्ति की आज़ादी पर आघात है?
नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया पर कुछ पत्रकार संगठनों ने प्रशान्त कनौजिया के समर्थन में खड़े होकर प्रेस की आज़ादी पर हमला बताते हुए विरोध प्रदर्शन और मार्च किया। लेकिन प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी के विरोध में तमाम पत्रकार और मीडिया संगठन जो आवाज उठा रहे हैं। मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या बिना तथ्यों, बिना जाँच पड़ताल के कोई ख़बर लिखना या प्रचारित करना वाजिब है। क्या इन अपने को पत्रकार बताने वाले कनोजिया जी को ये बात पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण करते समय नही सिखायी गयी। httpss://youtu.be/W14GJIP7g2I ये बात बिल्कुल सही है कि हमारे देश के संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है। पत्रकारों को भी संविधान के उसी प्रावधान के तहत यह आज़ादी मिली है, जो देश के आम नागरिक को मिली है। लेकिन यह बात भी समझनी होगी कि संविधान यह स्वतंत्रता कुछ वाजिब प्रतिबंध के साथ ही देता है। मेरा सवाल यह भी है कि जब इस तरह के ट्वीट, खबरें लिखी जाती हैं, अब सवाल यहाँ यह भी खड़ा हो रहा है कि इसे ख़बर कहे या गपशप? ख़ैर, तब वे यह नही सोचते कि इसका क्या असर होगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सिर्फ़ मुख्यमंत्री ही नहीं अपितु वह नाथ सम्प्रदाय के गुरु गोरखनाथ मंदिर के महंत भी हैं। इस मंदिर का धार्मिक इतिहास काफी समृद्ध रहा है। बाबा गोरखनाथ का यह मंदिर नाथ संप्रदाय का केंद्र है। तो क्या इस खबर से इस सम्प्रदाय के लोगों की भावनाओं को ठेस नही पहुंचेगी? यदि हाँ तो अगर कोई बलवा-बवाल होता है तो क्या उसकी जिम्मेदारी कनोजिया साहब या इनका बचाव करने वाले संगठन लेंगें? क्या कनौजिया के समर्थन में खड़े होने वाले लोग यह मानते हैं कि वाजिब प्रतिबंध की यह संवैधानिक व्यवस्था पत्रकारों पर लागू नहीं होती? हमें उसे बचाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देनी चाहिए? जिसकी प्रतिष्ठा पर हमला हुआ है क्या उसका कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है? हालांकि, दूसरी ओर मैं यह भी कहना चाहूंगा कि क्या उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइंदों को कनौजिया औऱ उन अन्य दो पत्रकारों के गिरफ्तार करने में जल्दबाजी तो नही कर दी? क्या उनके खिलाफ मान हानि का दावा नहीं करना चाहिए था? या चेतावनी नही दी जा सकती थी? अदालत में याचिका नही लगानी चाहिए थी? शायद संविधान भी यही कहता है। पत्रकारों की गिरफ्तारी संविधान के खिलाफ है? गैर कानूनी है? कहीं ये सत्ता और ताकत का बेजा इस्तेमाल तो नही? बहरहाल, आज जो हमने प्रेस क्लब पर विरोध प्रदर्शन करके सरकार को संदेश दिया, कि हम सही है कनोजिया ने जो लिखा वो सही है? प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाही को दोष देकर हम बच नहीं सकते, हमें अपने गिरेबान में भी झांकना होगा। इस प्रकार की परम्परा और दबाव बनाकर, कहीं हम इस प्रकार के लोगों का हौसला अफजाई करने का काम तो नही कर रहे? (के पी मलिक)

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