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Indian Administration

राम चन्द्र कह गये सिया से—(ज़रा सोचिये ?)

राम चन्द्र कह गये सिया से—(ज़रा सोचिये ?)

नई दिल्ली : पब्लिक एंटरप्राइज़ सिलेक्शन बोर्ड-(PESB) ने बीपीसीएल के सीएमडी ओहदे के लिए अपनी सिफ़ारिश का ऐलान कर दिया गया है , आधिकारिक ऐलान PESB के वेबसाइट के मुताबिक़ BPCL के CMD की बागडोर श्री जी कृष्णा कुमार (ED- BPCL OTHER UNIT) को दिये जाने का ऐलान किया जाता है।इस ऐलान के बाद डायरेक्टर्स अपने आपको कोस रहे हैं कि हम क्यों डायरेटर्स बने और एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर्स के ज़हन में ये बात अब बैठने लगी है कि भैया अगर किसी PSUS का सीएमडी बनना है तो भूल कर भी डायरेक्टर्स नही बनेंगे। बीपीसीएल सीएमडी के इस ओहदे के लिए कुल 6 उम्मीदवारों को बोर्ड द्वारा शॉर्टलिस्ट कर बुलाया गया था । इन में से 3 डायरेक्टर्स और 3 एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर लेबल के अफ़सरान थे।और सभी BPCL से ही थे। इस नियुक्ति की सिफ़ारिश को भाग्य का फ़ैसला माना जाये या फिर PESB बोर्ड द्वारा दिया जाने वाला आशीर्वाद इस बात का फ़ैसला हम अपने पाठकों पर छोड़ते हैं, इस ओहदे पर सिलेक्शन करने का बोर्ड के सदस्य और बोर्ड के चेयरमैन का फ़लसफ़ा क्या था ये तो रब ही जाने क्योंकि ऊपर रब है और नीचे बोर्ड में सब हैं ,अगर इंटरव्यू के लिए हाज़िर होने वाले उम्मीदवारों पर नज़र डालें तो डायरक्टर्स लेबल के (3) अफ़सर थे और एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर्स लेबल के (3) अफ़सर थे।और जहां तक मेरा अपना तजुर्बा है ED की रिपोर्टिंग PSU के मातहत अफ़सर को होती है और डायरेक्टर की रिपोर्टिंग भारत सरकार को उस हिसाब से तो डायरेक्टर ED के मुक़ाबिल सीनियर ही होते होंगे ? पर इस नियुक्ति से ऐसा महसूस हो रहा है कि ED सीनियर थे और डायरेक्टर्स जूनियर-बात कुछ हज़म नहीं हुई।

अक़्ल इस बात को तसलीम करने में थोड़ा हिचकिचा रही है कि सिलेक्शन बोर्ड के सदस्य और PESB के चैयरपर्सन को कोई ना कोई खूबी तो इस उम्मीदवार में नज़र आई होगी जिसकी वजह से जूनियर को सीनियर के मुक़ाबल तरजीह दी गई या फिर ये बोर्ड के सदस्यों और चेयरमैन द्वारा नज़रे अव्वल का मामला है ? वो कौन सी ऐसी खूबी एक ED लेबल के अफ़सर में नज़र आई जो डायरेक्टर्स लेबल के किसी भी अफ़सर में नज़र नही आई ? जबकि इन तीनों डायरेक्टर्स को भी PESB के सदस्यों और PESB के चेयरमैन ने ही चुना था ? सवाल ये भी पैदा होता है कि या तो पहले PESB के बोर्ड के और चेयरमैन का फ़ैसला इन सभी डायरेक्टरों के बारे में ग़लत था या फिर इस बोर्ड का और चेयरमैन का फ़ैसला इस नियुक्ति के बारे में शोभा देता नज़र नही आ रहा है ? क्यूँकि डायरेक्टर तो ED से ऊपर ही होता है, अगर ये तीनों डायरेक्टर इतने नाकाबिल थे तो फिर इनको डायरेक्टर्स जैसे अहम ओहदे पर क्यों नियुक्त किया गया ? और अगर ये डाइरेक्टर्स के काबिल थे तो फिर इनमें से किसी एक को भी बीपीसीएल के चेयरमैन कम मैनेजिंग डायरेक्टर (CMD) के लायक़ क्यूँ नही समझा गया ?

ऐसे में आम नागरिक सोचने के लिए बाध्य हो जाता है कि आख़िर सीनियर्टी कम मेरिट के आगे मेरिट कम सीनियर्टी का लॉजिक सब जगह तो नहीं लगाया जाता फिर इसमें ही क्यों ? तो फिर क्या पिक और चूस की नीति यदा कदा अपनाई जाती है टीम इन्सप्रिट और मोटिवेशन पर ऐसे सिलेक्शन से कैसा असर पड़ेगा ? क्या सीनियर अफ़सर अब नहीं सोच रहे होंगे कि इस तरह की पालिसी महज़ एक गेम है सिलेक्शन नहीं ? इससे कर्मचारियों का मोरल और पब्लिक बिलीफ इन इंस्टिट्यूशंस दोनों पर असर पड़ता है।

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