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Indian Administration

क्या हो रहा है Indian PSU’S के बोर्ड में ?

Synopsis

इस लेख में भारतीय PSU कंपनियों के बोर्ड में क्या चल रहा है, उस पर चर्चा है। यह चर्चा दिखाती है कि सरकारी कंपनियों में निदेशकों की कमी और नायाबाहू नियुक्तियों का प्रभाव। इससे सवाल उठता है कि क्या इस स्थिति का हल निकलेगा या नहीं।
क्या हो रहा है Indian PSU’S के बोर्ड में ?

नई दिल्ली: क्या हो रहा है Indian PSU’S के बोर्ड में? ये सवाल एक यक्ष रूप ले चुका है,देश में प्राइवेट कंपनियों और सरकारी PSUs के बीच एक बड़ा अंतर दिखाई देता है, जिसका कारण और प्रारंभ कैसे हुआ, यह पता नहीं, लेकिन इस के प्रभावी परिणाम सामने आ रहे हैं।

सभी कंपनियों, चाहे वे प्राइवेट हों या सरकारी, को भारत सरकार के हों व कंपनी  एक्ट कॉर्पोरेट अफेयर्स विभाग द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार चलाना चाहिए। यहां एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि कितनी कंपनियां इन मानकों पर खरी उतर रही हैं?

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत सरकार की PSUs अक्सर बाबुओं की लापरवाही का शिकार होती है। नियमों के अनुसार, कंपनी के प्रबंधन के लिए बोर्ड का गठन किया जाता है, जो कंपनी के व्यावसायिक मामलों और निर्णयों में सहायक होता है।

हालांकि, सरकार की PSUs में बोर्ड के निदेशकों में या तो रिक्तियां लंबे समय तक बनी रहती हैं, या फिर किसी अन्य निदेशक को उसकी जिम्मेदारी सहित कार्य संभालने के लिए नियुक्त कर दिया जाता है। अगर किसी को उपयुक्त नहीं माना जाता है, तो मंत्रालय अपने किसी अधिकारी को उस कार्य की जिम्मेदारी सौंप देता है।

प्राइवेट कंपनियों में ऐसी प्रवृत्ति कम देखने को मिलती है, जहां उनके निदेशकों का टीम हमेशा तैयार रहती है। जब कोई निदेशक सेवानिवृत्त होता है या छोड़ देता है, तो उसकी जगह जल्दी दूसरा निदेशक नियुक्त किया जाता है।

आज, जब पेट्रोल और गैस सेक्टर में पूरी दुनिया में बंदिश का माहौल है, तो तेल और गैस कंपनियों के निदेशक मंडल की जिम्मेदारी और महत्व बढ़ जाता है। इन कंपनियों को देश के साथ ही विदेशी नीतियों और अन्य कार्यों पर भी ध्यान देना पड़ता है। अब ऐसे में इन कंपनियों में सही समय पर नियक्ति ना करके किसी बड़े पद वाले व्यक्ति को अतिरिक्त पद की जिम्मेदारी देना कहाँ तक सही होगा , जब पूरी दुनिया में त्राहि त्राहि और प्रतिबंधों का दौर चल रहा हो तो ऐसे में अपने पद के अलावा अतिरिक्त पद के काम को कैसे संभाला जा सकता है ? या फिर यों कहें कि पहले से काम के बोझ में दबे व्यक्ति पर मानो और बोझ डाल दिया गया हो ।

हाल ही में, एक रिपोर्ट में यह कहा गया था कि देश की एक बड़ी आयल कंपनी क्रूड कैरियरर (Ship manufacturing) का टेंडर निकालने में असफल रही है। इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं, जिसमें कार्य के भार का होना भी एक कारक हो सकता है। व्यापारिक क्षेत्र के लोग अच्छी तरह समझते हैं कि ऐसे स्थितियों में क्या कारण होते हैं

अब देखना होगा कि इस प्रकार की स्थिति का निवारण होगा या नहीं। देखते रहिए।

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