नई दिल्ली : पिछले कई वर्षों से सरकार के लिए सरदर्द साबित हो रही AIR INDIA की नीलामी आख़िरकार हो ही गई टाटा ग्रूप ने इसे अठारह हज़ार करोड़ रुपए की बोली लगा कर अपने बेड़े में मिला लिया, कुछ जानकार ऐसा मान रहे हैं कि अगर अठारह हज़ार करोड़ रुपए की बोली के साथ AIR INDIA की देनदारी भी टाटा ग्रूप को दे दी जाती तो इस सौदे में सोने पे सुहागा लग जाता। नीति आयोग की सिफ़ारिश बीमार कम्पनी को बेचेंगे और मुनाफ़े वाली कम्पनी को प्रोत्साहन देने वाली सलाह पर अमल करते हुए पहले नम्बर पर AIR INDIA की इतिश्री कर दी गई, लेकिन ज़हंन में अब दूसरा सवाल ये है कि क्या दूसरा नम्बर BPCL का है ? BPCL ना ही घाटे में चल रही है और ना ही सरकार को इससे कोई नुक़सान हो रहा है फिर भी अगर सरकार इसे बेचना चाहती है तो यकीनन सरकार के पास इसे बेचने की कोई ख़ास वजह होंगी, वर्ना इस तरह कोई फल देने वाले पेड़ को काटा नही करता ?
अटल जी की सरकार में जब तेल सेक्टर के निजीकरण का मामला मेरे संज्ञान में लाया गया, तो तब मैने कैबिनेट में अपनी राय रखी, कि हम तेल के किसी भी PSUS का निजीकरण ना करें , उस वक्त कैबिनेट ने मेरी राय से अपनी सहमति जताई और तेल सेक्टर के निजीकरण को टाल दिया गया, आज के परिप्रेक्ष्य में क्यूँकि मैं कैबिनेट या सरकार का हिस्सा नही हुँ, इसलिए मैं कोई टिप्पणी नही करूँगा, राम नाइक -पूर्व पेट्रोलियम मंत्री भारत सरकार’
दो बड़ी घटनाओं का उदाहरण हमारे सामने है, पहली घटना कोविड-१९ की है किस तरह पूरा देश इस महामारी से गुजरा और हमारी PSUS पूरी तरह कंधे से कंधा मिलाकर सरकार के साथ खड़ी रहीं। सरकार के हर कदम के साथ लड़ कर हम सब ने इस महामारी से देश को उभारा, सोचनीय विषय यह है कि अगर हमारी PSUS का आर्थिक योगदान नही होता तो हमारी सरकार और हमें कितने मुश्किल दौर से गुजरना पड़ता ? और यदि BPCL का निजीकरण कोविड-१९ से पहले हो गया होता ? तो क्या सरकार को कोविड के दौरान BPCL द्वारा जो योगदान दिया गया वो मिल पाता ? दूसरी घटना ब्रिटेन की है जहां पैट्रोल पम्पों पर बोर्ड लगा दिए गए स्टॉक नही है, BPCL को ख़रीदने के लिए जिन बिज़नेस घरानों ने अपना इंट्रेस्ट दिखाया है उसमें से कोई भी PSUS नही है क्यूँकि PSUS को इस बोली से बाहर रखा गया है, ज़्यादातर गलियारों में ये चर्चाएँ हैं कि वेदांता अपनी विदेशी कम्पनी के लिए BPCL को अपने हाथ से जाने नही देगा, क्यूँकि वेदांता ने पहले भी HINUSTAN ZINK को ख़रीद कर बहुत मुनाफ़ा कमाया है, और अब वो अपनी विदेशी कम्पनी के लिए इसे ख़रीदना चाहती है।कुछ जानकार ये भी राय रखते हैं कि BPCL की बहुत सारी प्रॉपर्टीज़ प्राइम लोकेशन पर हैं जिन पर BPCL ख़रीदने वालों की पैनी नज़र है, कुछ ख़ास लोकेशन में से मुंबई की BPCL वाली प्रॉपर्टी भी अहम मक़ाम रखती है। अब आप सोचें यदि भविष्य में COVID जैसे हालात पैदा होते हैं तो क्या मुसीबत के दौरान BPCL को ख़रीदने वाली कम्पनी देश के साथ खड़ी हो सकेगी ? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि क्यूँकि हाल ही में एक घटना आपके सामने रखते हैं, जानकार ये बताते हैं जब प्रधानमंत्री की उज्जवला योजना प्रारम्भ की गई थी तो एक मारूफ बिज़्नेस घराने से उज्जवला योजना में सहयोग करने के लिए कहा गया था पर हम ब्यापारी वाली बात का हवाला दे कर कम्पनी ने अपना पीछा छुड़ा लिया । दूसरी बात BPCL महज़ एक तेल या गैस की सप्लाई मात्र नही है, ये मार्केटिंग का वो मज़बूत खम्भा है जिसमें दरार आ गई या ये टूट गया तो वो दिन दूर नही होगा जब लोगों के घरों के चूल्हे भी जलना बंद हो जाएँ, क्यूँकि इसके कई पेट्रोलियम पदार्थों से बने ऐसे उत्पादन हैं जो नित लोगों की दैनिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं, उसकी बढ़ी या घटी क़ीमत तो एक प्रश्न चिन्ह है ही ? लेकिन मेरे ख़याल से क़ीमतों का घटना तो मुमकिन नही पर बढ़ने पर देशवासियों पर उसका क्या असर होगा इस पर भी ध्यान देना होगा, मूल्य बढ़ने के कारण ये उत्पादन निवासियों की दैनिक प्रक्रिया से दूर हो जाएँगे ? फिर उज्जला जैसी योजना को ज़िंदा कैसे रखा जा सकेगा ? या फिर वही लकड़ी या फूस से खाना बनाने का ज़माना लोट आएगा?
अब आप कहेंगे कि IOCL तो है इस काम को करने के लिए, और ONGC भी है इस काम को करने के लिए , क्यूँकि HPCL की हिस्सेदारी ONGC के पास है, चलो हम मान भी लेते हैं आपकी बात पर ONGC जयादर एक्सप्लोरेशन में है और IOCL रिफ़ाइनरी और मार्केटिंग में है । गौरतलब है कि हमारे जानकार ये बता रहे हैं BPCL के पास जो पहाड़ जैसी मार्केटिंग है उसका मुक़ाबला हम अपनी दूसरी PSUS से नही कर सकते , क्यूँकि बिज़नेस या ज़िंदगी में एकाग्रता काफ़ी महत्व रखती है और मार्केटिंग करने की जो एकाग्रता BPCL के पास है वो शायद ही किसी और के पास होगी , यही वजह है कि मार्केटिंग जैसे मज़बूत खम्बे को गिराने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। हम अपने पाठकों और सरकार के सलाहकारों के लिए सवाल छोड़ कर जा रहे हैं, BPCL की नीलामी का मसौदा कोविड-१९ और ब्रिटेन की घटना से पहले किया गया था, तो क्या अब समय आ गया है कि BPCL के बारे में दोबारा विचार किया जाए, या BPCL की नीलामी के बाद भारत सरकार को लगातार मिलने वाले लाभांश की पूर्ति कोई दूसरी PSU कर पाएगी ?











































