नीले आकाश में उड़ने वालों की भी व्यथा सुनियें ……

भारत जैसे देश में पब्लिक को अपनी सेवाएँ देने वाले सेक्टरों में लोगों की अक्सर ये राय बनती है कि सरकार से अच्छा प्राइवेट प्लेयर इन सेवाओं वाले सेक्टर को चलाने में कहीं ज़्यादा बेहतर होते हैं, हो सकता है कि पब्लिक का ये आँकलन सही हो ! पर भारत में पब्लिक सेवाएँ देने वाला एक सेक्टर ऐसा भी है जिसका इस्तेमाल लोग शिक्षा , बिज़नेस, टूरिज़म,हैल्थ और इमरजेंसी सेवाओं के लिये करते हैं, हमारे पाठक समझ गये होंगे हम भारत के सिविल एविएशन सेक्टर की बात कर रहे हैं।
यूँ तो सिविल एविएशन मन्त्रालय के अन्तर्गत बहुत कुछ आता है पर हम अपने इस लेख के मार्फ़त एक ज्वलन्तशील मुद्दे को सबके सामने रखना चाहते हैं , हम इशारा कर रहे हैं एयरलाइंस और उन से दोचार होने वाले प्रभावित यात्रियों की तरफ़ , ये सेक्टर मात्र ऐसा सेक्टर है जिसका इस्तेमाल सिर्फ़ अमीर या पैसे वाले ही नहीं करते बल्कि इमरजेंसी में मजबूर लोगों के पास दूर दराज तक पहुँचने के लिये इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं, ये मात्र एक ऐसा विकल्प है जिसको गरीब आदमी इमर्जेंसी में मजबूरी में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जल्दी पहुँचने के लिये इस्तेमाल करता है, इस में कोई शक नहीं है कि अक्सर एयरलाइंस की सवारी को मालदारों और पर्यटकों कि सवारी माना जाता है पर कई मामले ऐसे भी आते हैं कि दो वक़्त की रोटी तक मुश्किल से खाने वाला इंसान अपने किसी ख़ास या परिवार की मुश्किल दूर करने के लिये दूर का सफ़र जल्दी तय करने के लिये उधार या कर्ज़े पर पैसा ले कर इस विकल्प को चुनता है।

किसी भी देश का एविएशन सेक्टर उस देश की अर्थव्यवस्था को ऊपर लाने और नीचे डुबोने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार निभाता है पूरी दुनिया में कई मुल्क तो ऐसे हैं जिनकी ज़्यादातर निर्भरता इस सेक्टर पर निर्भर है, हिंदुस्तान में इस सेक्टर में हमेशा उथल पुथल रही है कई बार एयरलाइन के किराए को ले कर, तो कई बार एयरलाइन चलाने वाली कम्पनियों की लापरवाही को ले कर।
कई कम्पनियाँ भारत में आईं और चली गईं कुछ को कामयाबी मिली और कुछ कर्ज़े की दुहाई दे कर बैंकों का NPA बड़ा गईं, इन्ही एयरलाइन में से एक एयरलाइन जो पहले भारत सरकार के पास हुआ करती थी अब टाटा जैसे बड़े समूह के निजी हाथों में हैं , जब ये एयरलाइन सरकार के पास थी तब बड़ा हल्ला हुआ करता था कि सरकार के बस का नहीं है इसे चलाना अगर ये प्राइवेट हाथों में होती तो इसकी बात ही कुछ और होती ! और आज जब ये प्राइवेट हाथों में है तो वही लोग जो प्राइवेट होने की पुरज़ोर वकालत किया करते थे अपने माथे पर हाथ पीट रहे हैं और ये सोचने पर मजबूर हैं कि काश ये सरकार के पास होती तो कम से कम सरकार की जवाबदेही तो तय होती , इस समूह में तो किसी की कोई जवाबदेही ही नहीं है, फ़्लाइट की उड़ान की बात हो , फ़्लाइट में होने वाली अनियमताओं की ,फ़्लाइट के अकसमक किराए बढ़ाए जाने (VACATION) की , या फिर एयरक्राफ़्ट /एयरक्रू की ग़ैर मोजूदगी की ! कोई कुछ बताने वाला है ही नहीं ! बस टिकट लो और आजाओ एयरपोर्ट पर , जो दुर्गति असहाय यात्रियों के साथ हो रही है उसके लिये भगवान ही मालिक है, फ़्लाइट के जाने में देरी हो तो घण्टों एयरपोर्ट पर बैठे रहो कोई मदद नहीं, क्यों फ़्लाइट में देरी हो रही है कुछ पता नहीं , एक ग्लास पानी तक के लिये कोई पूछने वाला नहीं है, वहीं दूसरी तरफ़ अगर कोई आपका सगा संबधी या मरीज़ आ रहा है तो भी यही हाल है घंटों तक बैठे रहो कोई बताने को तैयार नहीं है कि फ़्लाइट में देरी की वजह क्या है ? या फिर फ़्लाइट कब पहुँचेगी ? जगह जगह पर मदद के लिये सलाह देने वाले हेल्प डेस्क नदारत हैं , कस्टमर केयर हेल्प लाइन पर कॉल उठाने वाला कोई नहीं और अगर गलती से उठा भी ले तो उनसे कोई जानकारी हासिल नहीं होती सिवाय मायूसी के, कई बार तो इस तरह के हेल्प लाइन नम्बरों पर बात करके ऐसा महसूस होता है कि हम किसी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंट इंस्ट्रुमेंट से बात कर रहे हैं । ये हाल तब है जब बहुत चर्चित एवम प्रदर्शित प्राइवेट सेक्टर के हाथों में इस एयरलाइन की बागडोर है !
कमाल की बात ये है कि डीजीसीएभी इस पूरी पिक्चर से नदारत है, ऐसे में डीजीसीए पर सवाल उठना लाज़मी है, यात्रियों को मापदण्डों के अनुसार एयरलाइंस अपनी सेवाएँ दे सकें इस बात की निगरानी की ज़िम्मेदारी डीजीसीए की भी होती होगी ! भारत में सिविल एविएशन मन्त्रालय के ऊपर हमेशा से उँगलियाँ उठती रही हैं , सरकारें चाहें किसी भी सियासी जमात की हों पर माफ़ कीजिए अभी तक के तजुर्बे में कोई पाकीज़गी देखने को नहीं मिली है ।
मोजूदा हालातों में मंत्री जी से बहुत कुछ उम्मीदें थी क्यूँकि वो ख़ुद एक शाही घराने से आते हैं इसलिए ऐसा महसूस किया जा रहा था कि उनके आला दर्जे के नज़रिये के हिसाब से सब कुछ ठीक ठाक चलेगा , इसलिये सब अस्वस्थ थे कि उनकी सरपरस्ती में एविएशन सेक्टर की एक नई सुबह होगी, पर काश ऐसा हो पाता ! इस सेक्टर की समयरूपी दानवी यातनाओं से सम्बन्धित सवाल एविएशन मन्त्रालय के सचिव को प्रेषित किए गये थे , पर जनहित के सवालों के जवाब देने का एविएशन मन्त्रालय के सचिव महोदय के पास समय ही नहीं है , ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एयरलाइन वालों ने उन्हें भी अपने रंग में ही रंग लिया है।
समाचार पोर्टल ने संबंधित मन्त्रालय के सचिव को जनहित से संबंधित कुछ सवालों के जवाब देने के लिये इस नज़रिए से मेल किया था ताकि एविएशन विभाग द्वारा दिये जाने वाले जवाब को इस समाचार के आँकलन में शामिल किया जा सके , उनको रिमाइंडर भेजने के बाद भी सचिव महोदय के कार्यालय से कोई जवाब हासिल नहीं हुआ ।एविएशन सचिव कार्यालय द्वारा ये तो बताया गया कि मेल साहब के सम्मुख रख दिया गया है जैसे ही कोई जवाब आयेगा आपको दे दिया जायेगा पर समाचार के आँकलन तक कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है।
आप तो जानते ही हैं कि किसी भी सरकार को जनता की नज़रों में गिराने और उठाने में सरकारी बाबुओं का किरदार बहुत अहम होता है ,अब इतने काबिल मंत्री जी के निरीक्षण एवं देख रेख में ऐसा क्यूँ हो रहा है ये तो एक मुअम्मा है । देखना ये भी होगा कि जनहित में पूछे गये सवालों के जवाब देने में मन्त्रालय के बाबू और कितना समय लेंगे ?
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