बेरोजगार युवाओं, किसानों की आत्महत्याएं और सरकार की आर्थिक नीतियां

(- के. पी. मलिक) देश में बढती बेरोजगारी और रुपये के मूल्य में लगातार गिरावट प्रधानमंत्री मोदी के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को पांच हजार अरब डॉलर तक ले जाने के दावों की हवा निकलती नज़र आ रही है। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के बड़े-बड़े दावों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में गहरे संकट में दिखाई पड़ रही है।आत्महत्या करने का निर्णय मानव का असहाय परिस्थिति की चरम पराकाष्ठा में पहुचने के पश्चात सोच समझ कर लिया गया दुःखद अन्तिम निर्यण होता है और इसके बाद कोई निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं होती। मौत की काली छाया से मानव सर्वाधिक डरता है, मगर आत्महत्या के निर्णय में स्वयं मौत को गले लगा लेता है फिर कल्पना कीजिये, यह कितना डरावना व भयानक निर्णय होता होगा। लाखों नागरिको को सरकार की गलत और कमजोर आर्थिक नीतियों के कारण इस तरह के भयानक निर्णय लेते हुए क्रियांन्यन करने पड़े। इससे बड़ी ह्रदय विदारक और विडम्बना की घटना देश मे नहीं हो सकती।चमचों बेलचो से घिरा हुआ हमारे देश का राजनैतिक नेतृत्व क्या इन ह्रदय विदारक और विडम्बना की घटनाये और इनसे पड़ने वाले प्रभावों से परिचित हैं। क्या राजनैतिक नेताओं का काम देश की जनता पर केवल राज करना और कुर्सी को सुशोभित करना भर रह गया है या फिर उनका काम जनता के विकास के साथ, उन्हें खुशहाल जिंदगी देने की अपनी जिम्मेदारी निभाना है। राजनैतिक नेतृत्व को जनता को केवल वोटबैंक और अपने आप को जनता का भाग्यविधाता समझने की सोच को बदलने की आवश्यकता है।एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या कर्ज में डूबे अन्नदाताओं की संख्या के मुकाबले अधिक है। लगभग सभी क्षेत्रों जैसे छोटे व्यापार, विनिर्माण, कृषि और सेवाओं को गंभीर संकट से गुज़रना पड़ रहा है। विपक्ष सरकार पर आये दिन आरोप लगा रहा है कि केवल बड़े व्यापारिक घरानों एवं कॉरपोरेट्स को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। मौजूदा सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को खत्म करने अथवा उनके निजीकरण के फ़ैसले करके बेरोजगारी बढ़ाने का काम कर रही है।अगर गौर किया जाये तो हमारी मौजूदा आयातित आर्थिक नीतियां 10 फ़ीसदी लोगों के हाथों राष्ट्र की 90 फ़ीसदी अर्थ, प्रकृति सम्पदा और उत्सरगो को सौप चुकी है।अवशिष्ट 90 फ़ीसदी नागरिकों के पास 10 फ़िसदी अर्थ और राष्ट्र की बची-कुची सम्पदा का छोटा सा हिस्सा रह गया है। 10 फ़ीसदी लोगों के हाथों 90 फ़ीसदी अर्थ और राष्ट्र की सम्पदा अपनी काबलियत से नहीं बल्कि धोखाघड़ी, चतुराई चालाकी और गैर कानूनी तरीके से इकट्ठी हुई है। 1980 से अब तक शेयर बाजार (दुनिया का सबसे बड़ा जुआखाना) घोटाले, चिटफण्ड घोटाले, बैंकिंग प्रणाली और राष्ट्र की आयातित अर्थनीति की कमजोरियों के सहारे लगभग 70 लाख करोड़ रुपये के घोटालो को, देश में अंजाम दिया जा चुका है। इस धन राशि का बड़ा भाग निर्बोध और अशिक्षित नागरिकों का पैसा था और उन्होंने एक-एक पैसा करके इस धनराशि को जोड़ा था। इसके पीछे कमजोर कानून व्यवस्था, राजनैतिक पैठ और आम जनता की अज्ञानता का लाभ तथाकथित दुर्बुतो ने उठाया है। मौजूदा आयातित आर्थिक नीतियां जारी रही तो कुछ वर्षो में आम जनता के पास बची हुई 10 फ़ीसदी अर्थ और राष्ट्र बाकी सम्पदा पर उन दुर्बुतो का कब्जा हो जायेगा। 90 फ़ीसदी नागरिक खाली हाथ अपने भाग्य को कोसते हुए नज़र आयेंगे। हमारा राष्ट्र तेजी से उसी दिशा की ओर बढ़ रहा है।
बुद्धिजीवी वर्ग का उत्तरदायित्व यह है कि वह राष्ट्र और सरकार को सच्चाई का आईना दिखाये और परिस्थितियों का उचित मार्ग दर्शाये। यही वह तबका है जो अपने ज्ञान से अज्ञान को दूर भगाता है। जनता को सत्य से रुबरु करना और राष्ट्र को आगाह करना, विशेष रूप से इस वर्ग की जिम्मेदारीयों व कर्तव्यों का भाग है।बहरहाल, हमारी भूगौलिक परिस्थियां, आर्थिक श्रोत, संसाधन, शिक्षा-दीक्षा, जनसँख्या, अन्य आवश्यकताएं आदि विकसित राष्ट्रों से सम्पूर्णतया भिन्न है। देश की लगभग 65 फ़ीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और उसमें से लगभग 60 फ़ीसदी आबादी कृषि कार्यो पर निर्भर है। राष्ट्र की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इस क्षेत्र का योगदान 8 फ़ीसदी से नीचे है फिर इनके पास अर्थ कैसे पहुंचेगी। राष्ट्र के अर्थशास्त्री एवं आर्थिक विशेषज्ञ सोच समझ कर विकास का नमूना विकसित करें। विकसित राष्ट्रों की आर्थिक नीतियो का नमूना हमारे देश के लिए जहर से घातक साबित हुआ है। नीति निर्माता और आर्थिक विशेषज्ञ हमारे देश के अनुकूल आर्थिक नीतियों का विकास कर उसे तेजी से लागू करें। राष्ट्र के नागरिकों को आत्महत्या करने जैसा दुःखद और भयानक अन्तिम निर्यण लेने के लिए मजबूर नहीं होना पड़े। सरकारे आती और जाती रहेगी मगर कमजोर आर्थिक नीतियों से लाखों नागरिकों के आत्महत्या का कलंक राष्ट्र पर लगता हैं।
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