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त्याग-समर्पण स्नेह धैर्य व दायित्व की प्रतिमूर्ति “माँ” महिला का सबसे शक्तिशाली स्वरूप

हस्तक्षेप / दीपक कुमार त्यागी स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार
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“अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस” जो समाज में महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान और उपलब्धियों पर ध्यान आकर्षित करके केन्द्रित करने के लिये विश्व भर में 8 मार्च को हर वर्ष मनाया जाता है। इस दिन को विश्व की ताकतवर नारी शक्ति को सम्मान देने, उनके कार्यों की सराहना करने और उनके लिये दिल से प्यार, आभार व सम्मान जताने के उद्देश्य के लिये मनाया जाता है। वैसे हम अपने चारों तरफ ध्यान से देखें तो स्पष्ट नज़र आता है कि महिलाएँ हमारे जीवन व समाज का सबसे मुख्य महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं। उनके बिना जीवन संभव नहीं है, वो हमको जीवन देने से लेकर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्य सभी क्षेत्रों में एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। विश्व में महिलाओं की सभी क्षेत्रों में उपलब्धियों की सराहना को याद करने के लिये ही “अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस” का उत्सव मनाया जाता है। हमारे देश भारत में भी महिलाओं के अधिकारों के बारे में समाज में जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य के लिये 8 मार्च को अब पूरे उत्साह के साथ लोगों के द्वारा पूरे भारतवर्ष में “अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस” का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। यह हमारे देश व समाज में महिलाओं की भूमिका, अधिकार और उनकी स्थिति के बारे में वास्तविक संदेश को फैलाने में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
वैसे किसी भी महिला के लिए माँ की भूमिका का निर्वहन करना सबसे जिम्मेदारी भरा जीवन का शानदार सुखद अहसास होता है। आज “अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस” मैं उस माँ की महिमा के प्यारे संदेश का प्रचार-प्रसार करके महिला शक्ति को कोटि-कोटि नमन वंदन करता हूँ।

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माँ के बिना पृथ्वी पर जीवन की उम्मीद नहीं की जा सकती, अगर धरती पर माँ न होती तो हम सभी का अस्तित्व भी न होता। माँ दुनिया का एक ऐसा बेहद शक्तिशाली शब्द है जिसका उच्चारण व लेखन बेहद सरल है। लेकिन उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन करना बेहद कठिन होता है। माँ मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर एक ऐसी पवित्र आत्मा है जो अपनी संतान के अच्छे जीवन के लिए इस हद तक समर्पित है कि वो अपने सुख-दुख सब कुछ भूल जाती है और संतान के प्यार, स्नेह व उचित लालन-पालन के दायित्व के लिए दुनिया के हर एक नाते-रिश्ते को पीछे छोड़ देती है, हर विकट परिस्थिति से वो संतान की खातिर भिड़ने के लिए हर समय तैयार रहती है, हर संकट में वो संतान पर जान न्यौछावर करने के लिए तैयार रहती है। वैसे दुनिया में हर महिला की चाहत होती है कि वो माँ के इस जीवन को जीये और उसके आलौकिक सुख का आनंद ले। क्योंकि सनातन धर्म व अन्य सभी धर्मों में माना जाता है कि हमारी धरा पर माँ शब्द का धारण करने वाली ममता की प्रतिमूर्ति माँ के इस नाम में हम सभी के पालनहार ईश्वर खुद वास करते है। वैसे भी हमारे देश में आदिकाल से लेकर आज के आधुनिक व्यवसायिक काल में भी माँ को परिवार व समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। भारत में माँ को संतान के प्रति निस्वार्थ जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाली सच्चे त्याग-समर्पण, स्नेह, धैर्य, दायित्व, कोमलता, सहृदयता, क्षमाशीलता व सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता है। वैसे भी माँ को इस धरती पर ईश्वर की सबसे महत्वपूर्ण शानदार कृति माना जाता है। आज के आधुनिक युग में भी सम्पूर्ण विश्व में एक नारी के रूप में जीवनदायिनी माँ का सबसे जरूरी कर्त्तव्य है कि वह अपनी संतान रूपी नई पौध के जीवन में संस्कारों के बीज डालकर उसमें खाद-पानी सही समय से लगा कर, उसकी नैतिक मूल्यों की जड़ों को परिपक्वता प्रदान करके सुसंस्कृत, सुसमृद्ध, सुदृढ़ करके देश का सुयोग्य नागरिक बनाए। जिससे परिवार, समाज, गाँव, शहर, यहाँ तक की देश भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर सकें। वैसे हर महिला एक माँ के रूप में इसके लिए अथक परिश्रम व प्रयास करती है। सत्य बात तो यह है कि माँ से बढ़ कर इस दुनिया में कोई रिश्ता-नाता नहीं होता है और यदि माँ न हो तो यह दुनिया एक वीरान उजाड़ रेगिस्तान से ज्यादा कुछ नहीं है।

धरा पर माँ ही एक ऐसी शक्तिशाली प्राणी है जो हमें जन्म देती है और हमारे जीवन की सबसे पहली गुरु होती है। जो हमको उंगली पकड़ कर चलना सिखाती है, जिसका सिखाया कारगर लोक व्यवहार का ज्ञान हमारे जीवन की राह को सरल बनाता है। माँ वो होती है जो अपने बच्चे की मन की बात को उसके कहने से पहले जान लेती है, जो अपने बच्चों की आँखों को देखते ही उनकी खुशी व दर्द को भांप लेती है, हमारी हर हरकत को दूर से ही देखकर जान लेती है। माँ ईश्वर का वो सुखद अहसास है जो हर किसी नारी को नहीं मिलता जिस महिला को यह अहसास मिलता है वो बहुत खुशकिस्मत व भाग्यशाली होती है। माँ का कर्ज एक ऐसा कर्ज है जो संतान अपनी पूरी जिन्दगी भर की कमाई देकर यहाँ तक भी जान न्यौछावर करके भी अदा नहीं कर सकती है, सच यह है कि माँ का कर्ज हम सात जन्म तक भी नहीं उतार सकते है। यहाँ तक की संतान माँ का प्रिय शिष्य होने के बाद भी कभी भी अपनी माँ को कोई गुरु दक्षिणा तक नहीं दे पाती है। मैं अपनी चंद पंक्तियों के द्वारा माँ के रूप में सबसे शक्तिशाली महिला शक्ति को नमन करता हूँ

“जीवनदायिनी माँ कैसे में तुम्हारा ऋण चुकाऊं,
जान न्यौछावर करके भी तेरा ऋणी रह जाऊं,
चाहूं हर जन्म तेरी ही कोख से जन्म मैं पाऊं,
जीवन भर तेरी सेवा करके अपना संतान धर्म निभाऊं।।

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