आजादी के बाद के वर्षों में नेता की वह परिभाषा कमजोर होती गई-विदेश मंत्री एस. जयशंकर
दिल्ली विश्वविद्यालय के वाईस रीगल लॉज के कन्वेंशन हाल में आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्रीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे, ‘मोदी@20: ड्रीम्स मीट डिलीवरी‘ पुस्तक पर एक विशेष वार्तालाप का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा किया गया, मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में कहा कि यह पुस्तक मौजूदा प्रधानमंत्री की जीवनी नहीं है बल्कि एक ऐसी असाधारण किताब है जिसे मौजूदा कैबिनेट मंत्री और मौजूदा एनएसए से लेकर सभी क्षेत्रों के लोगों ने एक साथ मिलकर लिखा है।
[sg_popup id=”8883″ event=”inherit”][/sg_popup] इस पुस्तक में एक मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक शासन की यात्रा को आगे बढ़ाने वाले नेतृत्व की एक पीढ़ी को कवर किया गया है। इस दौरान जयशंकर ने इस पुस्तक में संग्रहित न केवल उनके अपने स्वयं के लेखन से, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और एनएसए अजीत डोभाल के लेखों के अंशों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि पुस्तक के कथानक के साथ मोदीजी का व्यक्तित्व बदल जाता है- आज उन्होंने जो अंश प्रस्तुत किए हैं, वे उनके व्यक्तित्व का एक पक्ष दिखाएंगे और यदि वह पीवी सिंधु या सुधा मूर्ति के लेखन से पढ़ेंगे तो परिप्रेक्ष्य पूरी तरह से बदल जाएगा।[sg_popup id=”8882″ event=”inherit”][/sg_popup]
जयशंकर ने अमित शाह के शब्दों का सहारा लेते हुए कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं को तब राष्ट्रीय नेता माना जाता था, लेकिन आजादी के बाद के वर्षों में नेता की वह परिभाषा कमजोर होती गई। अब मोदीजी हैं जो एक राष्ट्रीय नेता का उदाहरण बने हैं। इसके अलावा, गठबंधन में, उन्होंने अमित शाह के विचारों को प्रतिध्वनित करते हुए कहा कि यह राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का समझौता है और भारतीय लोकतंत्र पर एक स्थायी अभिशाप है। गुजरात में मोदीजी के काम को एक प्रतिबिंब के रूप में लेते हुए उन्होने कहा कि एक मुख्यमंत्री के रूप में मोदीजी चुनावी चक्र के अनुसार चुनाव को ध्यान में रख कर काम नहीं कर रहे थे, बल्कि गुजरात को अगले दशक और आने वाली पीढ़ी के लिए एक राज्य बनाने की दृष्टि से काम कर रहे थे।
2011 में, जब मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, चीन में तत्कालीन राजदूत के रूप में अपनी मोदी के साथ पहली बातचीत को याद करते हुए जयशंकर ने कहा कि, तब भी वह आतंकवाद को न तो खुद हल्के में लेते थे और न दूसरों द्वारा इसे सामान्य रूप में लेने का समर्थन करते थे। उन्होंने सभी भारतीयों को अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में एक स्वर में बोलने का समर्थन किया, खासकर भारत के विरोधियों के साथ। वह मानते हैं कि आंतरिक मतभेदों को कभी भी बाहरी दुनिया के सामने उजागर नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विचार ने हाल के दिनों में भारत को अपनी पाकिस्तान नीति तैयार करने में मदद की है।