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रिलायंस ग्रूप्स के प्रेसिडेंट संजीव सिंह दो साल के लिए कमला नेहरू प्रोधोगिकी संस्थान परिषद के सदर नामित किए गए

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नई दिल्ली : ३० जून २०२० को इंडियन आयल के  चेयरमैन पद से  सेवानिव्रत  होने के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ग्रूप में बतौर  प्रेसिडेंट के पद पर पदासीन होने वाले आली ज़नाब संजीव सिंह को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में कमला नेहरू प्रोधोगिकी संस्थान परिषद के सदर के ओहदे पर मुंतखिब किया गया है, उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से जारी शासन आदेश में उनकी मियाद दो साल के लिए बताई गई है।
आप सभी के ज़हन में ये सवाल आ रहा होगा कि इसमें नया क्या है ? सरकार ने जिसको काबिल समझा उसको नियूक्त किया ? हम बताते हैं आपको इसमें क्या नया है ,  जैसा कि हम अपने पहले वाले आर्टिकल में आपको बता चुके हैं कि किस तरह अपनी पूरी ज़िंदगी PSUS में गुज़ारने के बाद ज़्यादा तर अधिकारी PVT कम्पनियों में अपनी बची हुई जिंदिगी को लेविस स्टाइल बनाए रखने के लिए नियुक्त कर लिए जाते हैं, कुछ ज़मीर रखने वाले अफ़सरों की राय में ये एक तरह का लेन देन होता है जो इस बात पर चलता है कि “आप PSU रह कर हमारी मद्द करो और आपके सेवानिव्रत होने के बाद आपकी ज़िम्मेदारी हमारी हम आपकी मद्द करेंगे ” ।अब हम अपने मुद्दे पर आते हैं कि इस नियुक्ति में नई बात क्या है ?

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नई  बात ये है कि पब्लिक सेक्टर को प्राइवेट में बदलने की पुरज़ोर वकालत करने वाले बाबू और सरकारी सलाहकार इस सरकारी हुक्मनामे को ज़रा ध्यान से पड़ें । सरकारी इस हुक्मनामे में नियुक्त किए जाने वाले साहब के नाम के साथ देश की या  यूँ कहें कि दुनिया में मशहूर कम्पनी रिलायंस के पद की जगह देश की शान बड़ाने वाली PSU (IOCL) का पद पूर्व चेयरमैन लिखा गया है, जबकि संजीव सिंह ने  IOCL के बाद रिलायंस ग्रूप के सदर के ओहदे पर अपनी सेवाएँ देने को चुना था,  सवाल इस चीज़ का है कि अगर PSUS  इतनी बड़ी फ़ेल्यर हैं जिसको हमेशा हमारे सरकारी  सलाहकार PVT करने की सलाह देते रहते हैं तो फिर इस सरकारी  हुक्मनामे  में संजीव सिंह का पद रिलायंस ग्रूप के सदर  की जगह पूर्व CMD क्यूँ लिखा है ? अब ये फ़ैसला आप पर छोड़ता हूँ कि किसकी शाख़ बड़ी होती है दुनिया के नामी रहीशों की कम्पनी की या भारत सरकार के उपक्रमों की ?

इस हुक्मनामे के बाद जानकारों की एक राय और भी है जो इस और इशारा करती है  कि ऐसे नसीब वाले कम ही होते हैं जिन्हें सेवानिव्रत होने के महज़ तीन चार महीने बाद ही NOC मिल जाए और किसी प्राइवेट कंपनी के ग्रूप प्रेसिडेंट होने के साथ साथ किसी शिक्षा संस्थान में सदर का ओहदा भी मिल जाए, सवाल इस चीज़ का नही कि इस ओहदे से उनको कोई फ़ायनैन्शल मदद होगी पर साहेब ओहदा तो ओहदा होता है फिर चाहें वो बिना वेतन का हो या वेतन वाला , वैसे एक और चर्चा आजकल इस हुक्म के बाद ज़ोरों पर हैं कहा जा रहा है कि हमारे एक मरकज़ के वज़ीर और संजीव सिंह कि नज़दीकियों को अगर कोई कम करके आंक रहा है तो उससे बड़ा अहमक कोई और नही हो सकता।

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