दिल्ली के राजधानी कॉलेज में बेकल उत्साही की जयंती पर भव्य कवि सम्मेलन और मुशायरा

दिल्ली, 2 जून 2025: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित राजधानी कॉलेज में हिन्दी अकादमी दिल्ली और उर्दू अकादमी के सहयोग से अंजुमन फरोग़-ए-उर्दू दिल्ली द्वारा पद्मश्री बेकल उत्साही की जयंती पर एक भव्य कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन किया गया। इस अवसर पर साहित्य प्रेमियों ने बेकल उत्साही के योगदान को याद करते हुए उनके संस्मरण साझा किए, जिसने उपस्थित श्रोताओं के दिलों को छू लिया।
कार्यक्रम में बेकल उत्साही की बेटियों डॉ. सोफिया और आरिफा उत्साही सहित उनके परिजन और प्रशंसक शामिल हुए। आरिफा उत्साही ने अपने पिता की स्मृति में आयोजित इस समारोह के लिए आयोजकों का हृदयस्पर्शी वक्तव्य के साथ आभार व्यक्त किया। वरिष्ठ शायर दीक्षित दनकौरी की अध्यक्षता और मोईन शादाब के कुशल मंच संचालन में कवियों और शायरों ने अपने काव्य पाठ से सभागार को भावविभोर कर दिया।

काव्य पाठ में अरविंद असर, अलका शरर, जावेद क़मर, शाहिद अंजुम, डॉ. चेतन आनंद, मोईन शादाब, संतोष सिंह, गार्गी कौशिक, शशि पांडेय, मोनिका शर्मा और रविन्द्र रफीक ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। मुख्य अतिथि शशि गर्ग (सीए) और कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर दर्शन पांडेय ने सभी कवियों, अतिथियों और आगंतुकों का स्वागत किया। अनिल मीत, हशमत भारद्वाज, डॉ. खुर्रम ‘नूर’, पूनम मल्होत्रा, प्रोफेसर जसवीर त्यागी, प्रोफेसर सुमन और प्रोफेसर जितेंद्र कुमार सहित कई साहित्य प्रेमी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
कवियों की रचनाओं ने बांधा समां:
• दीक्षित दनकौरी: “बहुत हम याद आएंगे, किसी दिन देख लेना, चले उस पार जाएंगे, किसी दिन देख लेना।”
• चेतन आनंद: “ज़ुबाँ से बोलेगा या फिर नज़र से बोलेगा, मेरा वजूद तो मेरे हुनर से बोलेगा।”
• गार्गी कौशिक: “चुप न रहती तो और क्या करती, हक नहीं था के फैसला करती।”
• मोनिका मासूम: “ज़माने की हक़ीक़त हमसे पहचानी नहीं जाती, सयाने हैं बहुत लेकिन ये नादानी नहीं जाती।”
• संतोष सिंह: “दर्द ईजाद कर रहा हूँ मैं, हाँ! तुझे याद कर रहा हूँ मैं।”
• अरविंद असर: “मुझको अश्कों के समुंदर से भिगोने लायक, कोई कांधा तो मिले फूट के रोने लायक।”
• अलका शरर: “शाख से गिरते हुए पत्तों से सीखा हमने, मुख़्तसर ज़िंदगी चुपचाप बिता ली जाए।”
• जावेद क़मर: “वो शाखे-गुल है तो तलवार करके देखते हैं, अब उससे इश्क का इज़हार करके देखते हैं।”
• मोईन शादाब: “हमारे आंसुओं की किस कदर तौहीन की उसने, किसी के सामने रोकर बहुत पछता रहे हैं हम।”
• शाहिद अंजुम: “अब इस्लामाबाद में भी महफूज़ नहीं, अच्छे खासे रामनगर में रहते थे।”
• शशि पांडेय: “मेरे प्रेम में वो बांसुरी की तान हो गया, मैं उसकी हो गई वह मेरी जान हो गया।”
इस साहित्यिक समारोह ने कविता और शायरी के माध्यम से भावनाओं, प्रेम, दर्द और सामाजिक यथार्थ को उजागर किया। कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं की जमकर वाहवाही बटोरी, जिसने इस आयोजन को अविस्मरणीय बना दिया। (मोहित त्यागी, स्वतंत्र पत्रकार)
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