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पद्मभूषण गोपाल दास नीरज की याद में भव्य कवि सम्मेलन: शायरी और कविताओं ने बांधा समां

नई दिल्ली, 07 जून 2025: इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में जश्ने अदब द्वारा आयोजित एक शानदार कवि सम्मेलन और मुशायरा साहित्य प्रेमियों के लिए किसी सौगात से कम नहीं था। यह आयोजन पद्मभूषण गोपाल दास नीरज की स्मृति को समर्पित था, जिन्होंने हिंदी कविता को अपनी रचनाओं से अमर बना दिया। कवियों और शायरों की दिलकश प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने की पूरी संभावना जगा दी।

साहित्यिक सितारों का जमावड़ा
वरिष्ठ शायर फ़रहत एहसास की अध्यक्षता और अनस फ़ैज़ी के कुशल मंच संचालन में इस आयोजन ने साहित्यिक दुनिया के कई दिग्गजों को एक मंच पर ला खड़ा किया। करीब 3 घंटे तक चले इस कार्यक्रम में हर शायर और कवि ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं के दिलों को छू लिया। तालियों और वाह-वाही की गूंज ने सभागार को जीवंत बना दिया।

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कविता और शायरी का जादू
• विज्ञान व्रत ने अपने चिर-परिचित अंदाज में शेर पढ़कर माहौल को भावुक कर दिया:
“मैं था तनहा एक तरफ़, और ज़माना एक तरफ़।
तू जो मेरा हो जाता, मैं हो जाता एक तरफ़।”
• दीक्षित दनकौरी की पुरकशिश तरन्नुम ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया:
“राह बदलूं कि क़ाफ़िला बदलूं,
इससे बेहतर है रहनुमा बदलूं।
दर्द जाता नहीं ऐ चारागर,
रोग बदलूं कि मैं दवा बदलूं।”
• गोविन्द गुलशन ने अपनी शायरी से दिलों पर कब्जा कर लिया:
“दिल है उसी के पास, हैं सांसें उसी के पास,
देखा उसे तो रह गईं आँखें उसी के पास।
बुझने से जिस चराग़ ने इंकार कर दिया,
चक्कर लगा रहीं हैं,

हवाएं उसी के पास।”
• कुंअर रंजीत चौहान, जो इस आयोजन के संयोजक भी थे, ने अपनी रचना से सभी को प्रभावित किया:
“रंजीत भाई आपका खोना कमाल है,
उस पर कमाल आपके जैसा तलाशना।”
• अज़्म शाकिरी ने दर्द और हौसले का मिश्रण पेश किया:
“लाखों सदमे ढेरों ग़म,
फिर भी नहीं हैं आँखें नम।”
• जावेद मुशीरी ने अपनी शायरी से भावनाओं को उकेरा:
“अपनी आंखों को गुनाहगार नहीं कर सकता,
मैं किसी और का दीदार नहीं कर सकता।”
इसके अलावा, पवन (आईएएस), शिखा पचौरी, डॉ. ओम निश्चल, डॉ. बिनोद सिन्हा, ज्योति आज़ाद खत्री, अश्विनी कुमार ‘चांद’, और रामायण धर द्विवेदी ने भी अपने काव्यपाठ से आयोजन में चार चांद लगा दिए।

गोपाल दास नीरज को सच्ची श्रद्धांजलि
यह आयोजन केवल कविता और शायरी का मंच नहीं था, बल्कि पद्मभूषण गोपाल दास नीरज के साहित्यिक योगदान को याद करने का एक भावुक अवसर भी था। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, और इस कार्यक्रम ने उनकी विरासत को जीवंत रखने का काम किया। श्रोताओं और कवियों ने एक स्वर में नीरज जी को याद किया, जिससे आयोजन और भी यादगार बन गया।

क्यों खास है यह आयोजन?
जश्ने अदब का यह कवि सम्मेलन साबित करता है कि कविता और शायरी आज भी जिंदा हैं और लोगों को जोड़ने की ताकत रखती हैं। यह न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए एक उपहार है, बल्कि समाज में सकारात्मकता और प्रेरणा फैलाने का माध्यम भी है। ऐसे आयोजन हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनते हैं।
तो, अगली बार जब ऐसा कोई आयोजन हो, इसे जरूर हिस्सा बनें और कविता के जादू को महसूस करें!
 (मोहित त्यागी) 

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