उज्जला योजना ज़िंदा रखने के लिये सब्सिडी बड़ाने की पूर्व चेयरमेन की सलाह वाजिब होगी या ग़ैर वाज़िब ?
सरकार ने उज्ज्वला योजना पर दो सो रुपये सब्सिडी का ऐलान कर दिया जिसको ले कर काफ़ी प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं कुछ इसे ऊँट के मुँह में जीरा बता रहे हैं तो कुछ बोल रहे हैं “Something is better then nothing ” IOCL के पूर्व चेयरमेन ने भी इस मामले में अपनी राय ज़ाहिर की है, जिसमें आपने सरकार की उज्जवला योजना पर अपने ख़्यालों का रद्दे अमल ज़ाहिर करते हुए उज्जवला योजना की तारीफ़ों के पुल बांधते हुए अपने इमले के आख़िरी मरहले मे उज्जवला योजना की दम तोड़ती तस्वीर पेश करने से वो अपने आपको ना रोक पाये।
हालाँकि जब इस योजना की शुरुआत हो रही थी तब वो ख़ुद इस योजना पर रद्दे अमल कराने में सरकार के साथ काँधे से काँधा मिला कर खड़े थे, क्यूँकि उस वक़्त आप मुल्क की एक बहुत बड़ी आयल कंपनी में बतौर आला अफ़सर तैनात थे, पर समझ नहीं आ रहा है क्यों अब उनको ऐसा महसूस हो रहा है कि उज्जला योजना अपने आख़िरी पड़ाव पर जा रही है ? हो सकता है कि उनके ज़राये ने उन्हे बताया हो कि ऐसा होने वाला है ? या फिर ये उनका अपना नज़रया हो पर दोनों हालातों में अगर उनके ख्यालात सच होते हैं तो वज़ीर ए आज़म की इस योजना का आख़िर बहुत ही ख़राब होगा।
जिस तरह से आपने अपनी तहरीर के आख़िरी मर हले में उज्जला योजना को ज़िंदा बनाये रखने के लिये 200 रूपये की सब्सिडी पर मायूसी ज़ाहिर की है उससे शायद ऐसा महसूस हो रहा है की वो इस योजना को ज़िंदा रखने के लिये कुछ और सिब्सिडी की वकालत कर रहे हों ? हालाँकि उनकी इस बात से इनकार नहीं है की जब ये योजना शुरू हुई थी तब एलपीजी गैस सिलेण्डर की क़ीमत आज की क़ीमतों से भी आधी थी, हैरानी इस बात पर है कि कोई ना वाक़फ़ इंसान इस तरह की बात करे तो समझ आता है पर देश की सबसे बड़ी आयल कंपनी के सीएमडी पद पर रहने वाली शक्सियत जो की इस बात से भले भाँति वाक़िफ़ है की एलपीजी का क़ारोबार किसी भी तरह से मुनाफ़े का सौदा नहीं होता है ये एक तरह की सेवा है और शायद इसी वजह से अब सरकार एलपीजी की जगह पीएनजी पर ज्यादा ज़ोर दे रही है, कोई भी तेल का एक्सपर्ट सब्सिडी को बड़ाने की सलाह कैसे दे सकता है जबकि उसे पता है की इस सब्सिडी का सारा बोझ सरकारी कंपनियों के माथे ही मंडा जायेगा जबकि सरकारी कंपनिया पहले ही इस कारोबार में घाटा उठा रही हैं, बात बड़ी अटपटी सी लगती है, योजना को ज़िंदा रखने के लिये उनकी गौरे फ़िक्र तारीफ़ के काबिल है, पर क्या ही बेहतर होता अगर वो सरकार का ध्यान इस और खींचते कि इस सब्सिडी का बोझ प्राइवेट कम्पनियों के ऊपर भी डाला जाये जिससे इस खूबसूरत योजना को हमेशा ज़िंदा रखा जा सके।