क्या रशियन की एक बड़ी गैस कंपनी ने भारत की एक बड़ी गैस कंपनी को ज़ोर का झटका धीरे से लगाया है ?

नई दिल्ली : दुनिया भर में अमेरिका अपनी दादागिरी चाहता है,पर रशिया उसकी दादागिरी के बीच में एक बड़ा पत्थर बन कर खड़ा हो जाता है, रशिया और अमेरिका में एक चीज बड़ी ही कॉमन नज़र आती है ? ये दोनों मुल्क बड़ी ही चालाकी से अपने हथियार कमजोर मुल्कों को बेचना और अपनी इकॉनमी को मज़बूत बनाना ।दोनों देश दुनियाँ के सामने ऐसे हालात पैदा करते हैं कि मानो बस अब वर्ल्ड वॉर हो कर रहेगा पर अंत में होता क्या है अमेरिका और रुस दोनों की इकोनॉमी आसमान को छूने लगती है। दोनों मुल्कों के अंदर की कहानी क्या चल रही है या तो दूसरे मुल्क इसे समझने में नाकाम रहते हैं या फिर मालूम होते हुए भी लाचार हो जाते हैं।
यूक्रेन की लड़ाई का उदाहरण हमारे सामने है किस तरह से रशिया ने भारत को सस्ते दामों पर गैस देने का वादा किया और अमेरिकी मित्र देशों को गैस सप्लाई में कटौती की पर अंदर खाने क्या हुआ पूरी दुनिया में अमेरिका और रुस की लुका छिपी का पर्दा फ़ास हो गया, जहां दोनों देशों के दरमियान यूक्रेन को ले कर जो हालात चल रहे थे उससे ऐसा लग रहा था कि डॉलर मुँह के बल गिरेगा और हिंदुस्तानी रुपया मज़बूत होगा पर हुआ उल्टा , रुस और अमेरिका की इकॉनमी आसमान को छूने लगी और हमारा रुपया नीचे गिरता चला गया ?
पर इससे इतर रशियन की एक बड़ी गैस कंपनी ने भारत की GAIL कंपनी को ज़ोर का झटका धीरे से लगाया है, ग़ैज़ प्रोम के नाम से जानी वाली ये कंपनी जो गैस की बड़ी सप्लायर मानी जाती है, अपने साथ कई कंपनियों को साथ मिला कर गैस सप्लाई करती है, अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि ग़ैज़ प्रोम ने आगे से गेल को गैस की सप्लाई देने से इनकार कर दिया है, जिसे ले कर चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो गया है।
जानकारों ने ऐसी संभावना प्रकट की है कि अब वो दिन दूर नहीं है जब हिंदुस्तान में गैस को ले कर बड़े पैमाने पर हाहाकार मच सकती है, ये हाहाकार ना सिर्फ़ CNG पंपों पर मचेगी बल्कि घरों के अंदर किचन में भी इसकी गूंज सुनाई दे सकती है, बड़ा सवाल ये है कि अगर भविष्य में ऐसा होता है तो हम उसके लिये कितने तैयार हैं ?
जहां एक तरफ़ हमारी गैस कंपनियाँ पूरे देश में गैस सप्लाई करने के लिए पाइपलाइन बिछा रही हैं हमारे सियासी लीडर डीज़ल और पेट्रोल का विकल्प गैस के रूप में देख रहे हैं और पूरी तरह भारत में ग्रीन एनर्जी का नारा दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ अमेरिका और रुस की तना तनी ने पूरे विश्व में तबाही जैसे हालात पैदा कर कर दिये हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि भारत मैं श्रीलंका जैसी स्थिति पैदा होने जा रही है ? निजी कंपनियाँ अपना पल्ला झाड़ने में पीछे नहीं हैं जब कभी भी देश को उनकी ज़रूरत होती है वो अपने मुनाफ़ा और घाटे के आँकलन की दुहाई देती रहती हैं, सस्ते दामों पर इंपोर्ट करके हिंदुस्तान में सप्लाई ना करके विदेशी मुल्कों में सप्लाई करके प्रॉफिट कमाना उनकी आदत में शुमार है, सरकारी सलाहकार इतने कन्फ़ियूज़ रहते हैं कि पहले सरकार को आगे बड़ा देते हैं फिर बोलते हैं पीछे हट जाओ, विंडफाल टैक्स और BPCL का निजीकरण टलना ताज़ा उदाहरण हैं और कई अन्य फ़ैसले हमारे सामने हैं जिसमे सरकार ने आगे कदम बड़ा कर पीछे हटाया है ?
हालातों से ऐसा लगा रहा है कि भारत की तेल और गैस की पीएसयू को भविष्य में भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है, अवाम पर महंगाई की मार और बड़ सकती है, रुपये की लगातार गिरावट डॉलर की तुलना में भारत सहित पड़ोसी देशों को भी अपनी गिरफ़्त में पहले से ही ले चुकी है, ऐसे मे हमारे सलाहकार बाबू लोग बाहरी ताक़तों का जुमला देकर अपना दायित्व से पल्ला झाड़ लेंगे ऊंका होना ना होना ऐसे मौको पर कोई मायने नहीं रखता है ।
भारत को अगर ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनना है तो सिर्फ और सिर्फ़ बाबुओं के भरोसे आर्थिक नीतियां छोड़ना शायद ठीक ना हो बल्कि ये सारी चीजें प्रोफेशनल व टेक्निकल मण्डल को आगे रख कर की जाना चाहिएँ ताकि सही सलाह मिल सके ना की प्रशनसिक सलाहकारों के भरोसे ?
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