किस की वोट ले गई को को ?

पूर्वी दिल्ली : बर्बादे गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है, हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा ? लगभग दस पंद्रह दिन के तूफ़ानी चुनाव प्रचार और शक्ति प्रदर्शन के बाद आख़िरकार आज RWA का मतदान हो ही  गया, न्यूज़ लिखे जाने तक वोट की गिनती शुरू हो गई थी पर अपने वोट डालने से वंचित रहे चुनाव कमिश्नर ने उम्मीदवारों से ये कहा है कि गिनती का कोई भी रुझान बाहर नहीं दिया जाएगा, हालाँकि ये लोकतांत्रिक नहीं है क्योंकि बाहर खड़े सभी सपोर्टर और उम्मीदवारों को ये जानने का हक़ है कि कितने राउंड की गिनती हुई है और कौन आगे चल रहा है। चुनाव बुलेटन जारी करना चाहिएँ।

अब बात करते हैं दिन भर के चुनाव गतिविधियों की। सुबह तक़रीबन नो बजे से ही मतदान करने की प्रक्रिया चालू हो गई थी, जो उत्साह इस बार के RWA चुनाव में देखा गया ऐसा कालोनी में पहले कभी नहीं हुआ, यहाँ तक कि किसी राजनैतिक चुनाव में भी ऐसा वोट डालने का जोश देखने को नहीं मिला, महिलाएँ हों या फिर पुरुष सभी इतनी गर्मी होने के बाबजूद लंबी लंबी लाइनों में खड़े हो कर अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे, महज़ एक या दो घंटे ही हुए होंगे कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों ने आरोप और प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू कर दिया। कुछ की शिकायत थी कि  उम्मीदवार बार बार अपना चश्मा साफ़ कर के लाइन में खड़े मतदाताओं को रिझा रहे हैं मानो कि उनसे कह रहे हैं की चश्मे के चुनाव निशान पर ही मुहर लगाना, तो दूसरी तरफ़ कहा जा रहा था गर्मी बहुत है आप थोड़ी देर पेड की छाँव में खड़े हो जाये या बैठ जायें क्योंकि पेड से आपको थोड़ा ऑक्सीजन भी मिलेगी और इस चिलचिलाती और चिपचिपी गर्मी से राहत भी ।

थोड़ा समय और गुजरा फिर चुनाव आयुक्त से लिखित शिकायतों का दौर चालू हो गया बात यहाँ तक आ पहुँची कि हम चुनाव को रद्द करने की माँग करते हैं, पद चुनाव आयुक्त ने ये कह कर ख़ारिज कर दिया कि हमे आपकी शिकायत में कोई तथ्य नज़र नहीं आया इसलिए आपकी माँग पर विचार नहीं किया जा सकता, वहीं दूसरी तरफ़ ये कहा जाने लगा खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे ऐसा लग रहा है कि चुनाव रद्द करने की दरखास्त देने वालों की वोट को को खा गईं इसलिए वो इस तरह की बात कर रहे हैं।

मतदान स्थल पर जानता की भीड़ ये बताती है कि जब भी चुनाव में लंबी क़तारें दिखती हैं तो वो या तो उस सिस्टम के ख़िलाफ़ होती हैं जो चल रहा है फिर उस सिस्टम को दोबारा लाने के लिए, पर यहाँ अधिकतर लोगों को ये कहते हुए सुना गया हमने प्रसन्ना के पैनल को वोट दिया था पर अब जब प्रशन्ना जी ही नहीं रहे तो इस पैनल को रिपीट करने का कोई मतलब नहीं है (ये मतदाताओं की राय है, हमारा इससे कोई लेना देना नहीं है) पर लोगों में इस बार को ले कर भी ग़ुस्सा था कि कालोनी में जो सुविधाएँ RWA को देना चाहिएँ वो दिखती नहीं हैं, मसलन छोटा गेट बंद है  और गार्ड सामने बैठा है ?  अगर गेट बंद है तो गार्ड क्यों बैठा है? और अगर गार्ड बैठा है तो गेट क्यों बंद है ? कुछ का कहना था कि गेट सिर्फ़ स्कूल वालों के लिए खुलता है कालोनी वालों के लिए नहीं।

चुनाव में  जो जीतेगा वही सिकंदर कहलाएगा, पर जीतने वाले पैनल या उम्मीदवार को इस बार जनता से सरोकार नहीं रखेगा तो फिर अगले चुनाव में उसकी वोट भी को को खा जाएँगीं।

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