नई शिक्षा नीति में देश के युवाओं को दिखाए गए चकाचौंध सपने ‘चांद पर सीढ़ी से चढ़ने’ जैसा है। नई शिक्षा नीति में सरकार ने अनेक लोक लुभावनी बातें कही है लेकिन यह भी अन्य योजना स्मार्ट सिटी, आदर्श सांसद निधि योजना, सबके बैंक खाते में 15 लाख रूपये डालने जैसा है। काल्पनिक सपने देश को दिखाने का प्रयास के सरकार का जारी है। जैसे अन्य योजनाओं का जमीनी धरातल पर कोई सरोकार नही है, वैसा ही हाल इस योजना का सरकार करने वाली है। सरकार ने पिछले 6 सालों से एडहाक, कांट्रेक्चुअल, टेंपरेरी व्यवस्था के माध्यम से देश के शिक्षकों का बुरा हाल करके रखा हुआ है। नई शिक्षा नीति में तो अध्यापकों के शोषण की अनेक संभावनाएं नजर आ रही है। नई शिक्षा नीति में सरकार ने जीडीपी का 6% खर्च करने की बात कही है लेकिन इस प्रकार चकाचौंध का सपना तो सरकार दिखा रही है लेकिन सरकार यह नहीं समझा पा रही है कि वह इस कार्य को कैसे अंजाम दे पाएगी ? नई शिक्षा नीति में मातृभाषाओं को जो महत्व में व्यावहारिक कठिनाइयां दिखाई पड़ रही हैं। यदि छठी कक्षा तक बच्चे मातृभाषा में पढ़ेंगे तो सातवीं कक्षा में वे अंग्रेजी के माध्यम से कैसे निपटेंगे ? अगली समस्या अखिल भारतीय नौकरियों के कर्मचारियों के बच्चे उनके माता-पिता का तबादला होने पर वे क्या करेंगे ? प्रांत बदलने पर उनकी पढ़ाई का माध्यम भी बदलना होगा। यदि उनकी मातृभाषा में पढ़ने वाले 5-10 छात्र भी नहीं होंगे तो उनकी पढ़ाई का माध्यम क्या होगा ? अगली समस्या क्या उनकी आगे की पढ़ाई उनकी मातृभाषा में होगी ? क्या वे बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. अपनी भाषा में कर सकेंगे ? क्या उसका कोई इंतजाम इस नई शिक्षा नीति में है ? एक तरफ मोदी सरकार प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने की बात कर रही है दूसरी तरफ सरकार फॉरेन इन्वेस्टमेंट के तहत अंतरराष्ट्रीय शिक्षा पद्धति को भारत में लाना चाहती है, जो कि अंग्रेजी माध्यम से होगी मातृभाषा में पढ़े-लिखे छात्र अचानक इंग्लिश के छात्रों के समान कैसे उचित अवसर तलाश पाएंगे। एक तरफ देश की प्रतियोगि परीक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम के छात्रों का अधिक संख्या में चयन किया जाता है और वही पर मातृभाषा में अध्यन करने वाले आज भी सड़क पर दर-दर भटक रहे हैं। उनके ऊपर सरकार का अभी तक कोई ध्यान नहीं है। इससे सरकार का दोगलापन रहा है। इस तरह के भेदभाव का वातावरण आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए लोगों को मातृभाषा में शिक्षा देने की बात कर रही है, पूंजीपति घरानों के लोगों के लिए प्राइवेट संस्थानों में अंग्रेजी माध्यम से अध्ययन करने के रास्ते खोल रही है। अंग्रेजी माध्यम के प्रतियोगी छात्रों के लिए रोजगार के अधिक अवसर खोल रही है दूसरी तरफ मातृभाषा में अध्ययन करने वाले के लिए रोजगार के दरवाजे बंद कर रही है। क्या ऊंची सरकारी और गैर-सरकारी नौकरियां भारतीय भाषाओं के माध्यम से मिल सकेंगी ? क्या भर्ती के लिए अंग्रेजी अनिवार्य होगी ? यदि हां, तो माध्यम का यह अधूरा बदलाव क्या निरर्थक सिद्ध नहीं होगा ? अर्थात पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा या राष्ट्रभाषा हो और नौकरी का, रुतबे का, वर्चस्व का माध्यम अंग्रेजी हो तो लोग अपने बच्चों को मातृभाषा, प्रादेशिक भाषा में क्यों पढ़ाएंगे ? देश के 80-90 प्रतिशत लोगों को अवसरों की समानता से ये स्कूल ही वंचित करते हैं। प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होगी। यह अत्यंत सराहनीय कदम है लेकिन असली सवाल यह है कि संसद, सरकार और अदालतों के सभी महत्वपूर्ण कार्य अंग्रेजी में होंगे तो मातृभाषा के माध्यम से अपने बच्चों को कौन पढ़ाएंगे ? ये लोग वही होंगे, जो ग्रामीण हैं, गरीब हैं, किसान हैं, पिछड़े हैं, आदिवासी हैं, मजदूर हैं। जो मध्यम वर्ग के हैं, ऊंची जात के हैं, शहरी हैं, पहले से सुशिक्षित हैं, वे तो अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाएंगे। नतीजा क्या होगा ? भारत के दो मानसिक टुकड़े हो जाएंगे। एक भारत और दूसरा इंडिया। अगली समस्या यह है कि नई शिक्षा नीति में कम संख्या में छात्र पढ़ाई कर रहे हैं उन संस्थानों को अन्य संस्थानों में मर्ज करने की बात कही गई है। जो की पूरी तरह ग्रामीण स्तर पर पढ़ने वाली महिलाओं के लिए रास्ते बंद करता है। उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ झारखंड नक्सली प्रभावित क्षेत्र एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम संख्या में छात्र विद्यालय में पढ़ते हैं सरकार उनमें सुधार करने की बजाए उनको बंद करके अन्य संस्थानों में मर्ज करने की बात कर रही है। पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को दूर पढ़ाने का वातावर्ण अभी तक विकसित नहीं हो पाया है जिसके कारण कई महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद हो जाएंगे। अगली समस्या नई शिक्षा नीति में सरकार का ऑटोनॉमस का प्रावधान है जो की पूरी तरह निजीकरण की तरफ इशारा है। इससे प्रत्येक संस्थान को अधिकार है कि वह अपने छात्रों से कितनी फीस वसूल करेगा इस व्यवस्था से सरकारी संस्थानों में मुनाफा कमाने का धंधा शुरू हो जाएगा जिसका बुरा प्रभाव आर्थिक दृष्टि से कमजोर छात्रों पर पड़ेगा। अर्थात कमजोर वर्गों के छात्रों को शिक्षा के दरवाजे बंद कर देगा। कहने के लिए नई शिक्षा है लेकिन वास्तविकता में देश के बहुसंख्यक वर्ग से शिक्षा का अधिकार छीनने का सरकार का षड्यंत्र है। अगली समस्या यह है कि इस शिक्षा नीति में डायवर्सिटी प्रतिनिधित्व देने की कोई चर्चा नहीं की गई है जो की पूरी तरह से सामाजिक दृष्टि से वंचित वर्गों को संवैधानिक अधिकार से बेदखल करने का एक कोशिश है। देश के सभी वर्गों को आसानी से शिक्षा मुहैया हो इसकी कोई सुनिश्चितता निर्धारित नहीं है।अगली समस्या यह है कि देश के समसामयिक मुद्दों पर समालोचनात्मक दृष्टि से अध्ययन के दरवाजे पूरी तरह से बंद करने का प्रावधान है। जो सरकार पर सवाल पैदा करती है उसके दरवाजे पूरी तरह से बंद करने की योजना है। अगली समस्या यह है कि ऑनलाइन लर्निंग का कुछ फायदा है ग्रामीण स्तर से जो लोग दिल्ली जैसे शहरों में आकर अध्ययन करते थे वो घर बैठे अध्ययन कर सकते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि इंटरनेट की फ्रीक्वेंसी ग्रामीण स्तर पर कम है। ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था तब कामयाब होगा जब देश के हर तबके को इंटरनेट फ्री प्रदान किया जाएगा। सरकार ने आधारभूत संरचना में कोई विकास किए बिना ही चकाचौंध वाले सपने दिखाने का काम किया है। सरकार ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था की बात तो कर रही है लेकिन देश में अधिकांश बच्चे ऐसे हैं जिनके फिलहाल न स्मार्ट मोबाइल है न ही लैपटॉप है। ऑनलाइन शिक्षा मुहैया करवाने वाले अध्यापक के पास इन सुविधाओं का अभाव है। शिक्षकों से ऑनलाइन के माध्यम से छात्रों तक शिक्षा मुहैया करवाने का मकसद यही है कि धीरे-धीरे देश के शिक्षित एवं छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा की आदत पड़ जाए और आने वाले समय में सरकार किसी प्रकार की नियुक्तियां करने से बच सके। सरकार चालाकी से आने वाले समय में ऑनलाइन के माध्यम से उपलब्ध हो रही शिक्षा रिकॉर्ड करके छात्रों को उपलब्ध करवाती रहेगी। एक समय बाद किसी प्रकार की शिक्षक की उनको कोई आवश्यकता नहीं रहेगी और ना ही नए अध्यापकों की नियुक्ति करने की कोई आवश्यकता रहेगी। इस तरह ऑनलाइन शिक्षा अभियान, आने वाली सरकारी नौकरियों एवं अध्यापकों से उनके अधिकार छीन लेने का एक प्रयास है। दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस के प्रभारी डॉ अनिल कुमार मीणा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में देश के युवाओं को भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से तकदीर बदलने वाले चकाचौंध प्रलोभन के अनेक सपने दिखायें। यें सपने वैसे ही है जैसे ‘चांद पर सीढ़ी से चढ़ना’। चांद तक कभी सीढ़ी नहीं बनाई जा सकती और यह जुमला पूरा हो नहीं सकता। देश की आधारभूत शिक्षा की संरचना में विकास किए बिना चकाचौंध के सपने पूरे नहीं किए जा सकते। मोदी सरकार जब से देश की सत्ता में आयें है उन्होंने देश के युवाओं को सिर्फ सपने दिखाने के सिवाय कुछ नहीं किया। देश का युवा फिलहाल रोजगार के अभाव में आत्महत्या का शिकार हो रहा है। सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।—-सरताज खान