सत्ता की चाभी वोट, टिकट, चढ़ावा,समर्थन, विरोध पर नियंत्रण से मिलेगी जिसके लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक प्रयास जरूरी हैं।जो लोग अपना नाम उपनाम, परंपरा,आचरण का बदलाव नही कर पाये उनका सफल होना मुश्किल कार्य है।अब एक नारा ही हमें हर चुनाव में व्यवस्था परिवर्तन की तरफ अग्रसर कर सकता है वह है आरक्षण के दुश्मन को न टिकट दो न वोट दो,न चढ़ावा दो।बिना उम्मीदवार की असलियत और आरक्षण के प्रति समर्पण और समर्थन भाव देखे हुए टिकट देने का खामियाजा हम भुगत रहे हैं।
मनुवादी को टिकट और वोट देना आत्मघाती है।
जिस दिन पच्चासी का टिकट वोट पच्चासी तक रह जायेगा उस दिन पन्द्रह वाला पन्द्रह तक सीमित होकर रह जायेगा।यह व्यवस्था परिवर्तन का सूत्र है ,सत्ता में जो भी आये पर मनुवाद का हावीपन 6माह में समाप्त हो जायेगा।