भारत में पेट्रोकेमिकल के उत्पादन में मात्र गिनी चुनी कंपनियां हैं जिसमें इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, गैस अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड, हलदीयॉ पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड, एचईमल रिफ़ाइनरी, ओपाल, और सबसे बड़ी रिलायंस बाक़ी और भी कई छोटी छोटी कंपनियां है जो PSU के साथ मिलकर काम कर रही है। पाठकों को बता दें कि पैट्रो कैमिकल उत्पाद दो तरह से बनाए जाते हैं एक गैस के उत्पादन से दूसरा तेल के उत्पादन से, गैस की अगर हम बात करें तो गेल और और तेल में IOCL अगर हम प्राइवेट की बात करें तो रिलायंस इस फ़ील्ड में है।
गैस से प्रोडक्ट लिमिटेड बन पाते है जबकि ऑयल के बाइ-प्रोडक्ट कहीं ज़्यादा है क्योंकि इंडियन ऑयल इंजीनियरिंग प्लास्टिक के प्रोडक्ट भी बनाता है,और रिफ़ाइनरी भी इंडियन ऑयल के पास अधिक संख्या में है।
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड में एक ऐसे अफ़सर का आग़ाज़ हुआ जो हर काम नियम से चाहता था, अफ़सर में कुछ कर गुज़रने की ख़्वाहिशें ज़ोर मार रही थीं जो अक्सर हर नव जवान अफ़सर में देखी जाती हैं , उसकी ये तमन्ना जल्द ही पूरी हुई जब उसको IOCL में बतौर एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर की ज़िम्मेदारी हरियाणा के पानीपत प्लांट में दी गई, किसी भी रिफ़ाइनरी को चलाने के लिए सिर्फ़ इंजिनियर या प्रबंधन का तजुर्बा काफ़ी नहीं होता बल्कि तजुर्बेकार यह बताते हैं जो इंसान इंजीनियर और प्रबंधन दोनों में महारत रखता हो वो ही रिफ़ाइनरी के प्लांट पर जीत हासिल कर पाता है, क्यूँकि इस तरह के प्लांट में काफ़ी ज्वलंतशील पदार्थों के मरहले से गुजरना पड़ता है जो ज़रा सी लापरवाही से क़यामत का सबब बन्ने के लिए काफ़ी होता है तक़रीबन चोबिस घंटों की अचूक तैनाती होती है जिसमें प्लांट में ही रहना खाना पीना और सोना पड़ता है, किसी भी वक्त ख़तरे के अलार्म की घंटी बज सकती है , अब चाहें ये घंटी ज्वलंत शील पदार्थ को ले कर हो या फिर अंदर काम करने वाले कर्मचारियों की चाय पानी ख़त्म हो जाने पर काम रोकने की, जो इन सब पर क़ाबू पा ले वही सिकंदर कह लाता है।
ये अफ़सर भी सिकंदर बना अपनी तैनाती के दौरान कभी भी कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच कोई टकराव की स्थिति पैदा नहीं होने दी ऐसा बताया जाता है, इंडियन ऑयल की मथुरा रिफायनरी प्लांट के बाद IOCL ने अपनी पानीपत की रिफ़ाइनरी में पेट्रोकैमिकल कॉम्पलेक्स की नीव रखी , अफ़सर ने अपनी क़ाबिलीयत से रिफायनरी में सब कुछ कंट्रोल में रखा, ना ही किसी यूनियन को पनपने दिया और ना ही कर्मचारियों और पर प्रबंधको के बीच किसी टकराव की स्थिति को पैदा होने दिया । इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड का पेट्रोकेमिकल उत्पादन पर अब तक ज़्यादा ध्यान नहीं था पर ये समझ आ चुका था कि ये धंधा मुनाफ़े का है, हल्दिया रिफ़ाइनरी हो, गुवाहाटी या फिर गुजरात, इस की सुगबुगाहट शुरू तो हो चुकी थी पर पानीपत में परवान चढ़ी, पानीपत रिफ़ाइनरी में ये तय किया गया कि हम एक पेट्रोकैमिकल कॉम्पलेक्स का निर्माण भी करेंगे और उत्पादन की शुरुआत करेंगे, पर सवाल ये उठा की हम उत्पादन तो करेंगे पर बिना मार्केटिंग के इस उत्पादन को शुरू करने का फ़ायदा क्या होगा ? क्योंकि पेट्रोकैमिकल मार्केटिंग पर ज़्यादातर रिलायंस अपने उत्पादन गढ़वारे, पोलिमर और बॉम्बे डाइंग के ज़रिए मार्किट में छाया हुआ था, धीरुभाई अंबानी उस समय इन सभी उत्पादकों की ट्रेडिंग किया करते थे उनके पास भी उत्पादन का कोई प्लांट नहीं था।
इंडियन ऑयल की पेट्रोकेमिकल के उत्पादन की ख़बर से भारत सरकार का पेट्रोलियम मंत्रालय भी उत्साह में था इसलिए बैठकों का एक मरहला वज़ारते दफ़्तर और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड के अफसरानों के बीच क़ायम होने लगा, IOCL के अफसरानो की मशरुफ़ियात को ज़ैरे नज़र रखते हुए ये तय किया गया के रिफायनरी पानीपत के एक्सिक्यूटिव डायरेक्टर ही वज़ारते दफ़्तर (मंत्रालय) को इस बारे में मालूमात फ़राहम (अवगत) कराएंगे इस तरह से इस अफ़सर के पास पूरा इख़्तेदार (चार्ज)आ गया, पानीपत में पेट्रोकैमिकल का उत्पादन और मंत्रालय को उसकी पूरी जानकारी देना अफ़सर के कामों में शामिल हो गया, बस फिर क्या था, जो भी पाठक PSU में कार्य करते हैं या कर चुके हैं वो इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि जब कोई अफ़सर मंत्रालय और PSU के बीच में सेतु का कार्य करता है तो उसका डंका उस से सम्बंधित PSU में बजता है यहाँ तक कि कई बार तो संबंधित PSU के चेयरमैन भी सेतु वाले अफ़सर सीधे सीधे टकराने से बचता है, इस अफ़सर ने पूरी तरह से मंत्रालय में अपने पैर जमाए मंत्रालय की मलूमात भी बड़ती गई और अफ़सर की मंत्रालय के अफ़सरों पर पकड़ मज़बूत होती रही, अचानक अफ़सर के ज़हन में ये ख़याल आया कि तेल के धंधे में सरदर्दी ज़्यादा है और जवाबदेही बहुत है जबकि इसके मुक़ाबिल पेट्रोकेमिकल में जवाब देही भी ज़्यादा नहीं है और सरदर्द भी कम है क्यूँ ना पेट्रोकेमिकल में ही अपने मुस्तकबिल को आगे बड़ाया जाए बस फिर क्या था धीरे धीरे इंडियन ऑयल ने पेट्रोकेमिकल के उत्पादों पर अपनी पकड़ बनायी और एक्सपोर्ट में अपने क़दम पसारने लगी IOCL के लिए तो ये बहुत अच्छी बात थी पर IOCL के इस पनपते हुए कारोबार से रिलायंस नामक कम्पनी में मायूसी छाने लगी थी, इंडियन ऑयल की वजह से रिलायंस की मार्केट को नुक़सान हो रहा था रिलायंस के अफ़सर जुगत में लगे थे कि किस तरह IOCL को रोका जाए अभी रिलायंस में इस बात का तान बाना चल ही रहा था अफ़सर की क़िस्मत ने ज़ोर मारा और इंडियन ऑयल के सबसे बड़े अफ़सर की बागडोर उसके हाथ में आ गई अब पानीपत के प्लांट में धीरे धीरे परेशानियों का दौर गुज़रने लगा एक मामले पर अफ़सर अड़ गए और मामला कोर्ट तक ले जाने की बात की नतीजा एक साल तक पानीपत के पानीपत पेट्रोकेमिकल को बंद रहना पड़ा बंद रहने की कुछ और भी वजह हो सकती हैं, इधर अफ़सर के आला ओहदे पर पहुँचने के बाद वो अफ़सर जो प्लांट में छोटी छोटी परेशानी आने पर बिना काग़ज़ी कोरम का इंतज़ार करते हुए प्लांट की परेशानी को दूर कर दिया करता था वही अफ़सर अब क़ानूनी पहलुओं में अटकने लगा जिसका नतीजा उत्पादन में कमी देखने को मिलने लगी , आए दिन छोटी छोटी परेशानी अब बड़े अफ़सर बाबू को ना गवार गुज़रने लगी थीं अब ये देखा जाने लगा कि कोई भी मामला सबसे बड़े अफ़सर के संज्ञान में लाया जाता तो सबसे बड़े अफ़सर उस पर ज़्यादा तबज्जो नहीं देते और ठंडे बस्ते में डाल देते, कारण क्या रहे ये तब समझ आया जब इंडियन ऑयल के सबसे बड़े अफ़सर सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी सेवाएँ रिलायंस को देने लगे, पर जानकार ये बताते हैं कि “जिस दौरान IOCL का पानीपत पेट्रो कैमिकल प्लांट एक साल तक बंद रहा उसी दौरान रिलायंस के मुनाफ़े में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ ?” में अपने सामेंईन से ये गुज़ारिश करूँगा कि सामेंईन जानकारो की राय को रिलायंस के मुनाफ़े को बड़े अफ़सर की तैनाती को आपसी ताल मेल से जोड़ कर ना देखें पर हाँ सवाल तो है ?