पड़ोसी राज्यों की लापरवाही से दिल्लीवालों की सेहत का बड़ा नुक़सान हो सकता है

दिल्ली : वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने पड़ोसी राज्यों के प्लान को खारिज कर दिया है। आयोग ने कहा है कि कोरोना महामारी की संभावित तीसरी लहर के समय अगर पराली से प्रदूषण हुआ तो बहुत विनाशक होगा। दिल्ली के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा,पंजाब और राजस्थान की सभी तैयारियां सिर्फ कागज पर हैं। पड़ोसी राज्यों की लापरवाही से दिल्लीवालों की सेहत का बड़ा नुक़सान हो सकता है।
दिल्ली और उत्तर भारत में मानसून अब जैसे-जैसे खत्म होगा तब उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान अगली फसल की तैयारी करेंगे। किसान धान की फसलको काटकर, गेहूं की फसल को बोने की तैयारी करेंगे। उसी वक्त पराली के कारण प्रदूषण बढ़ता है और पूरे उत्तर भारत के अंदर दिखाई देगा। एजेंसी सफर के मुताबिक करीब 45 फ़ीसदी प्रदूषण दिल्ली में सीधे पड़ोसी राज्यों की पराली जलने से होगा।
केंद्र सरकार जब इस पर कुछ नहीं कर पायी तो सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए सेवानिवृत जज के अधीन कमेटी बनाई। केंद्र सरकार ने उस कमेटी को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हम एक कमीशन बना रहे हैं। उस कमीशन को ताकत दी जाएगी कि वह पूरे उत्तर भारत के अंदर प्रदूषण और खास तौर पर पराली से होने वाले प्रदूषण के ऊपर काम करेगा। वायु गुणवत्ता प्रबंधक आयोग ने कुछ दिन पहले दिल्ली के चार पड़ोसी राज्यों से पराली से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए क्या-क्या तैयारियां की हैं, इसको लेकर रिपोर्ट मांगी। लेकिन बहुत दुख की बात है कि उसका कोई प्लान आयोग को नहीं दिया गया।
चारों राज्यों में से दो उत्तर प्रदेश और हरियाणा भाजपा के अधीन हैं, जबकि पंजाब और राजस्थान कांग्रेस के अधीन हैं। इन चारों राज्यों ने पराली से प्रदूषण को रोकने को लेकर कोई काम नहीं किया। पराली से प्रदूषण को रोकने के कई उपाय इस वक्त देश में उपलब्ध हैं। सबसे पहला बायो डी कंपोजर जो कि दिल्ली सरकार ने पिछले साल बनाया। कई लोगों को दिखाया कि कैसे बायो डी कंपोजर से पराली को गलाकर खेत के अंदर खाद बना सकते हैं। इसके अलावा मशीनों से पराली को निकाला जा सकता है और प्रोसेस करके इस्तेमाल किया जा सकता है, इस तरह की काफी मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं। केंद्र सरकार और आयोग ने इन राज्यों को कहा था कि आप इन मशीनों को किसानों तक पहुंचाने, सब्सिडी देने और वितरित करने का प्लान दें। आयोग का अवलोकन है कि राज्यों ने कोई प्लान नहीं दिया है। सिर्फ कागजी कार्रवाई की है कि पराली से हम इथरनोल बनाएंगे, औद्योगिक इस्तेमाल और कृषि के अंदर इस्तेमाल करेंगे। लेकिन कैसे इस्तेमाल करेंगे इसके बारे में कुछ नहीं बताया है। पूरी मशीनरी किस तरीके से किसानों तक पहुंचेगी, किसानों को सब्सिडी कैसे मिलेगी, इसका कोई ब्यौरा इन राज्यों ने नहीं दिया है। बायो डी कंपोजर कैसे बड़े स्तर पर बनाया जाएगा और किसानों को कैसे वितरित किया जाएगा, इसका कोई प्लान इन राज्यों के पास में नहीं है। किसान पराली ना जलाएं इसके लिए 100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से मदद हर किसान की करेंगे, ताकि वह पराली ना जलाकर किसी अन्य तरीके से इसका इस्तेमाल करे। लेकिन उसका कोई प्लान आयोग को नहीं दिया गया है। चावल की एमएसपी घोषित है, बाकी फसलों की एमएसपी घोषित नहीं है। इसलिए अभी सबसे ज्यादा धान उगाया जा रहा है। ऐसे में इस बार भी पराली की मात्रा उतनी ही रहेगी जितनी की पिछली बार हुआ करती थी। आयोग ने यह भी कहा है कि कई राज्यों के अंदर किसानों ने पराली काटकर इकट्ठा करके रखी, ताकि जिला प्रशासन उसको इकट्ठा कर उनके यहां से ले जाएगा। लेकिन इसका भी कोई इंतजाम और राज्यों के अंदर नहीं था। आखिर में किसानों को वह पराली जलानी पड़ी।
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