किसानों के मसीहा बाबा टिकैत को खराज़े अकीदत
(महेंद्र सिंह टिकेट के 84वें योमे विलादत पर ख़ास रिपोर्ट)


किसान मसीहा बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गाँव में एक जाट परिवार में हुआ था। 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था। जिसमे मार्च 1987 में प्रसाशन और राजनितिक लापरवाही से संघर्ष हुआ और दो किसानो और पीएसी के एक जवान की मौत हो गयी ! इसके बाद बाबा टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गये। जनवरी 1987 में जब बिजली दरों में प्रति हार्स पावर बीस रुपये की बढ़ोत्तरी की गई, तब बाबा टिकैत के नेतृत्व में भारी संख्या में किसानों ने मुजफ्फरनगर के करमूखेडी बिजलीघर को घेर लिया था। आठ दिनों तक उनकी घेरेबंदी चलती रही थी और घेरा तब टूटा जब तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने फैसला वापस लेने का एलान कर दिया था। वर्ष 1988 में भी उन्होंने मेरठ कमिश्नरी में कई दिनों तक प्रदर्शन किया था। इसके बाद बाबा टिकैत की अगुवाई में आन्दोलन इस कदर मजबूत हुआ कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को खुद सिसौली गांव में पहुंच कर पंचायत को संबोधित करते हुए किसानो की मांगो को मानने को मजबूर होना पड़ा था।
इस आन्दोलन के बाद बाबा टिकैत की छवि मजबूत हुई और देशभर में घूम घूम कर उन्होंने किसानो के हक़ के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया। कई बार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी धरने प्रदर्शन किये गये । हालाकि उनके आन्दोलन राजनीति से दूर होते थे।टिकैत जाटों के बालियान खाप में सभी बिरादरियां होती है। बाबा टिकैत ने खाप व्यवस्था को समझा और ‘जाति’ से अलग हटकर सभी बिरादरी के किसानो के लिए काम करना शुरू किया। किसानो में उनकी लोकप्रियता बढती जा रही थी। इसी क्रम में उन्होंने 17 अक्टूबर 1986 को किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन ‘भारतीय किसान यूनियन’ की स्थापना की।बाबा टिकैत किसानो के लिए लड़ाई लड़ते हुए अपने पूरे जीवन में करीब 20 बार से ज्यादा जेल भी गये। लेकिन उनके समर्थको ने उनका साथ हर जगह निभाया। अपने पूरे जीवन में उन्होंने विभिन्न सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज़, म्रत्युभोज, अशिक्षा और भ्रूण हत्या जैसे मुद्दों पर भी आवाज उठायी। बाबा टिकैत की पंचायतो और संगठन में जाति धर्म लेकर कभी भेदभाव नहीं दिखता था। जाट समाज के साथ ही अन्य कृषक बिरादरी भी उनके साथ उनके समर्थन में होती थी। खाद, पानी और बिजली की समस्याओं को लेकर जब किसान सरकारी दफ्तरों में जाते तो उनकी समस्याओं को सरकारी अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते थे। बाबा टिकैत ने किसानो की समस्याओं को जोरदार तरीके से रखना शुरू किया तो सरकार के पसीने छूट गये थे।
बाबा का हल्का सा इशारा चुनाव की दिशा बदल देता था। इसी वजह से अधिकतर जनप्रतिनिधि बाबा के वहां हाजिरी देंते थे। सियासी लोग उनसे करीबी बनाने का बहाना ढूँढ़ते रहते थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर कई अन्य कद्दावर नेता भी बाबा के यहाँ आते रहते थे। लेकिन उनके लिए किसानो की समस्याए और लड़ाई राजनीति से ऊपर रहती थी। बाबा टिकैत किसानो की न सुनने वाले नेताओं के खिलाफ सीधे लाठी की बात कर दिया करते थे।बाबा अपने अंतिम समय में जब उनका स्वास्थ्य बेहद ख़राब था अपने अंतिम समय तक किसानो के हितो के लिए संघर्ष करते रहे। बिमारी की अवस्था में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उन्हें सरकारी खर्च पर दिल्ली में इलाज कराने को कहा तो वो ठहाके लगाकर हस पड़े और प्रधानमंत्री जी से कहा कि उनकी हालत ठीक नहीं है और पता नहीं कब क्या हो जाए लेकिन उनके जीते जी अगर केंद्र सरकार किसानो की भलाई के लिए कुछ ठोस कर दे तो आखिरी समय में वह राहत महसूस कर सकेंगे और उन्हें दिल से धन्यवाद देंगे।15 मई 2011 को 76 वर्ष की उम्र में बीमारी के कारण बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की म्रत्यु हो गयी। और किसानो की लड़ाई लड़ने वाला ये योध्दा हमेशा के लिए शांत हो गया। लेकिन अफ़सोस कि अपने जीवन भर किसानो के हक़ की लड़ाई लड़ने वाले बाबा टिकैत के जाने के बाद भी सरकारों ने किसानो से मुँह मोड़ लिया, किसान आस लगाये बैठे है, कि जल्द कोई नया बाबा आयेगा और सरकारें किसान की सुध लेंगी।
(लेखक प्रतिष्ठित समाचार पत्र “दैनिक भास्कर” के ‘राजनीतिक संपादक’ हैं)
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