राजस्थान कांग्रेस का ऊंट किस करवट बेठेगा ?
गुलामी की प्रतीक कांग्रेस जिसकी स्थापना अंग्रेजों द्वारा की गई थी उसकी नींव ही कमजोर है

(विनोद तकिया वाला , स्वतंत्र पत्रकार) राजस्थान सैर सपाटों , पर्यटन विदेशी सैलानीयो का शहर , वीर वाँकुरो की धरती । रेत की ऊँचे ठीले रंग विरंगे परिधानो से सुसज्जित कर्ण प्रिय मुघर संगीत सुनने के लिए आप को अक्सर मिल जायेगे , पर आज कल राजस्थान की धरती भारतीय राजनीति के पंडितो का ना केवल ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है बल्कि भारत के लोक तंत्र के इतिहास मे नई अध्याय लिखने जा रही है ।
राजनीति की नई परिभाषा गढ रही है , हालाकि प्रजातंत्र में जनता ही जर्नादन होती है , वह अपने मतों का प्रयोग कर अपने प्रतिनिधि को चुन कर केन्द्र / राज्यों मे भेजती है, जो उनके अधिकारो के प्रति जनता व देश के प्रति जिम्मेदार जनता की प्रतिनिधि बन कर सेवा कर सकें ‘ राष्ट्र धर्म निभा सकें, वर्तमान समय मे भारतीय राजनीति में भूचाल आया है ।
कुछ राजनीति दल अपने राष्ट्र धर्म व जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भुल कर अपने परिवार व दल को सर्वोपरी मानते है । इसके लिए अपने पद , सता व शक्ति का दुरपयोग कर अपने को महान मसीहा मानते है । अभी राजनीति की रेतली राजनीति मे एक ऑधी आई है ।
राजस्थान कांग्रेस का ऊंट कि करवट बेठेगा यह कह पाना थोड़ी जल्द बाजी होगी, परन्तु इतना तो तय है कि पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी आने वाले समय में किसी भयावह बिस्फोट की ओर जरूर इशारे कर रही है। पार्टी की शीर्ष नेतृत्व द्वारा जिस प्रकार प्रति भावान युवा व जुझारू नेताओं की लगातार उपेक्षा की जा रही है उससे साफ जाहिर होता है कि पार्टी का भविष्य किसी खतरे की ओर संकेत दे रहा है।एक एक कर कर्मठ तथा अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर कब्र में पांव लटक रहे नेताओं को सिर मोर बनाया जाना कहां तक लाज़िमी है।ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस किसी खास परिवार की पार्टी बन कर रह गई है। जहां नेतृत्व पर सवाल उठाने वालोे का पर कुतैर दिया जाता है। गुलामी का प्रतीक कांग्रेस जिसकी स्थापना अंग्रेजों द्वारा की गई थी उसकी नींव ही कमजोर है,फिर इमारत कैसे मजबूत हो सकती है। इतिहास गवाह है जब जब केन्द्र में कांग्रेस विरोधी विचार धारा की सरकार बनी है तब तब पार्टी में विभाजन की श्रद्धा लकीरें लम्बी खींचती गई है। कांग्रेस की घटिया मानसिकता के कारण आमजनों का विश्वास दिन प्रतिदिन समाप्त हो रही है।आलम यही रहा तो एक दिन कांग्रेस का नामों निशान समाप्त हो जायेगा। जहां तक राजस्थान कांग्रेस का सवाल है तो सचिन पायलट पार्टी के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित होंगे।तभी तो कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी पायलट को पार्टी में वापस लाने वास्ते गिड़गिड़ा रहे हैं और अपने तमाम कुनबे को लगाकर पायलट पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन पायलट हैं कि मानने को तैयार नहीं। कांग्रेस की तथाकथित राजमाता सोनिया गांधी भी लाचार व बेवस दिख रही है।
हालकि राजस्थान की ऑधी कुछ दिनो के लिए थमती नजर आ रही है । अशोक गलोहत अपनी सरकार बचा ले । लेकिन यह भारतीय राजनीति व कांगेस पार्टी को कुछ दिनों के लिए राहत की मोहलत मिल गई है ।अभी राजस्थान की राजनीति के बदलते घटना चक्र की पल पल पर गहन अध्यन व पैनी पैठ रखने वाले चाणक्य भी यह दबी जुबान कह रहे है कि राजस्थान की राजनीति के ऊँट किस करवट बैठेगा यह अभी कहना उचित नही है ।(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है उनके निजी विचार हैं )
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