Message here

देश की सरकार किसान मज़दूर विरोधी और हर मोर्चे पर विफल-भूमि अधिकार आंदोलन

3 जुलाई को देशभर के विभिन्न संगठनों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए। तमिलनाडु के नीलगिरी क्षेत्र में स्थानीय संगठन  वीटीएमएस, छत्तीसगढ़ में बलौदाबाज़ार मे दलित आदिवासी मंच, कोरबा में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, जौनपुर, उ.प्र. में दिशा संगठन, चित्तौड़गढ़ में खेतिहर खान मज़दूर संगठन ने सरकारी नीतियों के खिलाफ जन प्रदर्शन किया। वहीं महाराष्ट्र के लातूर में श्रमजीवी संगठना और नागपुर में कष्टकरी जन आंदोलन ने जन प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी को सरकारी नीतियों के खिलाफ ज्ञापन भी दिया। ट्रेड यूनियनों और भूमि अधिकार आंदोलन की देशव्यापी अपील पर कई संगठनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में प्रदर्शन किया है और सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष को लेकर प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।

कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में एनडीए की केंद्र सरकार का कुप्रबंधन सामने आ चुका है, प्रवासी मज़दूरों का अभूतपूर्व संकट, सभी मोर्चों पर वर्तमान सरकार की असफलता का एक उदाहरण भर है। केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण संबंधित क़ानूनों, बिजली क़ानून में किए गए बदलाव और कोयला खनन को वाणिज्यिक उपयोग के लिए खोल दिये जाने जैसे क़ानूनों के लागू किए जाने के गंभीर परिणाम, देश के मज़दूर, किसान, आदिवासी और अन्य उपेक्षित समुदाय झेलने के लिए विवश हैं।

कोयले के निजी आवंटन के साथ साथ ग्राम सभा के अधिकारों की पूरी नज़रंदाजी से देश में और विस्थापन बढ़ेगा, स्वास्थ्य पर गहरा असर होगा और पर्यावरण और जंगलों की क्षति भी होगी। सरकार आत्मनिर्भरता के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों और धरोहर चंद कारपोरेट घरानों को बेच रही है। इसी तरह सरकार ने किसानों के खिलाफ अध्यादेश लाकर किसानों की लूट कारपोरेट को छूट देने की मंशा से कृषि उपज, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सुविधा अध्यादेश 2020), मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता अध्यादेश 2020), आवश्यक वस्तु (संशोधन अध्यादेश 2020), बिजली कानून( संशोधन) विधेयक 2020) आदि अध्यादेशों को लाकर कृषि संबंधी राज्यों के अधिकार छीन लिए है तथा कृषि मार्केट कानून में भी बदलाव किए हैं।

लॉकडाउन के दौरान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर भी सरकार ने हमले तेज़ कर दिए हैं। लगातार सीएए व एनआरसी विरोधी आंदोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं विशेष रूप से मुस्लिम युवाओं, छात्रों और महिलाओं को निशाना बनाया गया है। न्याय की प्रक्रिया जटिल और आम लोगों की समस्याओं से बहुत दूर हो गयी है।

लॉकडाउन की आड़ में देश के विभिन्न इलाकों में भूमि और जंगल के आंदोलनों पर हमले तेज़ हुए हैं और जंगलों में लोगों को उजाड़ने की प्रक्रिया भी तेज़ हुई है। खड़ी फसल को बर्बाद करके वन विभाग हिंसा पर उतारू है। बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों से लोगों ने वन विभाग की इस मनमानी का विरोध किया है और दोषी अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है। देश के विभिन्न हिस्सों से कारख़ानों में दुर्घटनाओं की ख़बरें आ रही हैं, जिनका सबसे ज़्यादा असर मज़दूर वर्ग पर हुआ है। विदेशी निवेश को आकर्षित करने के नाम पर श्रम क़ानूनों में बदलाव किए जा रहे हैं, जिनका सीधा फायदा उद्योगपति-पूंजीपति वर्ग को ही मिलेगा।

देश के सभी ट्रेड यूनियन इसका लम्बे समय से विरोध कर रहे हैं, भूमि अधिकार आंदोलन उनके माँगों का समर्थन करता है और सरकार की जन विरोधी नीतियों की निंदा करता है। 3 जुलाई से लेकर 9 अगस्त के बीच देश भर में सिलसिलेवार आंदोलनों को आयोजित किया जाएगा और 9 अगस्त को भूमि अधिकार आंदोलन के सहयोगी संगठन एक देशव्यापी प्रदर्शन भी आयोजित करेंगे।

******Copyrighted information, for general consumption, do not use without permission. Publication stands for accurate, fair, unbiased reporting, without malice and is not responsible for errors, research, reliability and referencing. Reader discretion is advised. For feedback, corrections, complaints, contact within 7 days of content publication at newsip2005@gmail.com. Disputes will be under exclusive jurisdiction of High Court of Delhi.

error: Content is protected !!