बढ़ते बलात्कार और हमारा आधुनिक समाज

(के. पी. मलिक)
राष्ट्रीय राजधानी से सटे और हाईटेक सिटी कहे जाने वाले गुरुग्राम में रिश्तों को शर्मशार करने वाली एक घटना कुछ दिनों पहले सामने आई थी। जानकारी के अनुसार एक पिता ने अपनी ही तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की वारदात को अंजाम दिया था। जब मामले की जांच की गई तो सामने आया कि इस व्यक्ति ने अपनी तीन साल की मासूम बेटी से इसलिए रेप किया क्योंकि वो नशे में था। दूसरी घटना उत्तर प्रदेश की है जिसमें विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने सत्तरह साल की लड़की से उस वक्त बलात्कार किया जब वह नौकरी मांगने के लिये अपने एक रिश्तेदार के साथ वहां गई थी। न्याय नहीं मिलने और पुलिस पर निष्क्रियता का आरोप लगाते हुए उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के सामने आत्मदाह करने का प्रयास भी किया था। इस प्रकार की ये कोई पहली घटना नही है। आजकल बलात्कार या रेप अनजान विषय नहीं है। समाचार पत्रों पर नजर डाली जाए तो बलात्कार की घटना न घटी हो, ऐसा दिन नहीं मिलेगा। दो बातें विचारणीय हैं: पहली व्यापक पैमाने पर बलात्कार के कारण क्या क्या हैं? दूसरा क्या इनका निवारण हो पायेगा? बलात्कार के विषय में सर्वविदित है कि बलात्कार करने वाला शोषक होता है तथा बलात्कार का शिकार बनी औरत शोषित होती है। कौन-कौन से कारण एक पुरुष को बलात्कार के लिए विवश करते हैं? कौन-कौन से कारण एक युवती को बलात्कार का शिकार बनाते हैं? क्या पुरुष ही इसके पीछे जिम्मेवार है? स्त्री मात्र निरीह है? संदर्भ में तमाम सवाल उठ खड़े होते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि पुरुष की नजर में नारी ऐशो आराम व वासना तृप्ति की चीज है, इसलिए किसी भी सुंदर स्त्री को अपने आगोश में लेने की उसकी प्रवृति ठीक मौके पर जाग उठती है मगर अति इस आधार पर कही जा सकती है कि एक कन्या शिशु से लेकर वृद्धा तक बलात्कारी की चपेट में है।
समय समय पर विभिन्न मंचो पर महिलाओं और समाज अन्य के मामलों को उठाने वाली आर. सूर्य कुमारी के अनुसार आज हमारी सामाजिक व्यवस्था कुछ इस तरह की बन चुकी है कि हमारा बच्चा अपना बचपन टेलीविजन के सामने रहकर ही शुरू करता है। एक समय था जब बच्चे का बचपन आध्यात्मवाद के साथ जुड़ा रहता था। बुजुर्गों की नीति प्रधान व ईश्वरीय चमत्कार से ओत-प्रोत कथाओं के साथ बच्चा भावी जिन्दगी में कदम रखता था। आजकल के बच्चे को आत्मचिंतन का सही मौका नहीं मिल पाता है। फिल्मी गीतों की धुनों पर थिरकता हुआ बच्चा माता-पिता की शाबाशी बटोरने की चेष्टा करता है। सच माने में तीन तीन पीढिय़ों का मिलन स्थल टेलीविजन का आंगन है। नायक-नायिकाओं की कामुक अदाएं, अंग प्रदर्शन, फूहड़ संवाद, पति-पत्नी के बीच की निजता को रास्ते पर ला खड़ी करने वाली मनोवृत्ति, कुल मिलाकर बच्चा आधुनिक फैशन के शिकंजे मेंं फंस जाता है और दुरुह रास्ता पकड़ता है। आगे चलकर ये चीजें उसे भाने लगती हैं-नशा, अश्लील साहित्य, उत्तरोत्तर काम-क्रिया। किशोर-किशोरियां व युवक-युवतियां यौन संबंधों की ओर झुक रहे हैं। इनके द्वारा यौन संबंधों को मनोरंजन के रूप में लिया जा रहा है। इसी वय के किशोर व युवक को बलात्कार का मौका मिल जाए तो हाथ से जाने नहीं देते।

पहले छोटी उम्र में ही शादियां हो जाया करती थीं, इसलिए एक युवक को गृहस्थ आश्रम का आनन्द उठाने का पूरा-पूरा मौका मिलता था। आजकल नौकरी ढूंढते-ढूंढते युवक पच्चीस-तीस साल का हो जाता है। उस पर भी पक्की नौकरी मिल जाए-यह गारंटी नहीं। ऐसे में घर बसाने का स्वप्न पूरा होता नहीं दिखता और वह काम-तृप्ति के लिए आतुर हो उठता है। बलात्कार के पीछे यह कारण प्रभावी है। एक वजह यह भी है कि विवाहित जीवन में भी पुरुष सन्तुष्ट नहीं है। आधुनिकता की दौड़ में शामिल स्त्री हर छोटी-बड़ी मांग को-हर बात को मनवाने के लिए पति से दूर रहने का हथकण्डा खूब अपना रही है। एक विवश पति के लिए पत्नी की हर ख्वाहिश पूरी करना संभव नहीं हो पाता और वह अंदर ही अंदर कुढ़ता रहता है और बलात्कार की ओर मुड़ता है।किशोरों, युवकों व असंतुष्ट पुरुषों के लिए वेश्यालयों तक जाना दो कारणों से महंगा पड़ता है-एक तो जेब खाली हो जाती है और दूसरा एड्स जैसे यौन रोग का खतरा भी बढ़ जाता है। काम इच्छा के प्रभावी हो जाने पर व्यक्ति के दिमाग में यह बात नहीं रहती कि बलात्कार का दुष्परिणाम क्या होगा? कानूनी कार्यवाही, कारावास किसी का ध्यान नहीं रहता।
इधर औरत अकेली हो, अनाथ हो या असुरक्षित हो तो बलात्कारी के शिकंजे में आसानी से फंस जाती है। विश्वासघात व षडय़न्त्र का रास्ता अपनाकर भी एक युवती के साथ बलात्कार किया जा सकता है। साजो-श्रृंगार के नए-नए प्रसाधन बाजार में मौजूद हैं जिनके पीछे आज की नारी पागल की तरह पड़ी है। रहन-सहन व रंग-ढंग से औरत किसी मॉडल या अभिनेत्री से कम दिखना नहीं चाहती। मिनी स्कर्ट व अन्य परिधानों का प्रचलन इतना ज्यादा हो गया है कि बलात्कार की परिभाषा तक न जानने वाला भी जीभ चटखारता दिखता है। एक मायने में अंग प्रदर्शन फैशन बन गया है। वैसे आधुनिक होना सही बात है मगर आधुनिकता की आड़ में उद्दंड हो जाना आत्मघात से कम नहीं। नारी कल्याण से संबंधित हर संगठन की मांग होती है कि बलात्कारी को कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिए। वैसे इस मांग को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता मगर इतना जरूर है कि बलात्कार के पीछे एक तरह का मनोरोग जिम्मेदार है। सामाजिक अस्थिरता, सामाजिक रूग्णता, आर्थिक विषमता आदि को केन्द्र कर यह मनोरोग पनप रहा है।आवश्यकता प्रारंभिक व मूलभूत संस्कारों को सुदृढ़ करने की है ताकि समाज का ढांचा मूल्यों पर खड़ा हो। जनजागरण अभियान तेज किया जाना चाहिए ताकि परिवार नियोजन, एड्स व यौनरोग निवारण, नशा मुक्ति, शिक्षा का प्रचार-प्रसार, स्वरोजगार आदि को लेकर अच्छा-खासा जनमत जुटाया जा सके।
औरत को चाहिए कि वह मनोबल के साथ-साथ विवेक का भी इस्तेमाल करें। नब्बे के दशक में महिलाओं में जुडो-कराटे का खूब प्रचलन था, अब धीरे-धीरे घट रहा है मगर इस तरह की कला महिला को आत्मसुरक्षा प्रदान कर सकती है। कन्या शिशु हो, युवती हो या वृद्धा, दीन हो, हीन हो या अनाथ-समाज में रह रही हर औरत को सुरक्षा देना समाज का ही कर्तव्य है और समाज में हर कोई शामिल है। कर्तव्य से मुंह मोडऩा एक किस्म का पलायन ही है जिसके कारण बलात्कार की प्रवृत्ति को बल मिलेगा।बहरहाल, आधुनिक युग में मनोवैज्ञानिकों ने भी अपने अध्ययन में पाया है कि हमारे दिमाग की बनावट इस तरह की है कि बार-बार पढ़े, देखे, सुने या किए जाने वाले कार्यों और बातों का असर हमारी चिंतनधारा पर होता ही है और यह हमारे निर्णयों और कार्यों का स्वरूप भी तय करता है। इसलिए पोर्न या सिनेमा और अन्य डिजिटल माध्यमों से परोसे जाने वाले सॉफ्ट पोर्न का असर हमारे दिमाग पर होता ही है और यह हमें यौन-हिंसा के लिए मानसिक रूप से तैयार और प्रेरित करता है। इसलिए अभिव्यक्ति या रचनात्मकता की नैसर्गिक स्वतंत्रता की आड़ में पंजाबी पॉप गानों से लेकर फिल्मी ‘आइटम सॉन्ग’ और भोजपुरी सहित तमाम भारतीय भाषाओं में परोसे जा रहे स्त्री-विरोधी, यौन-हिंसा को उकसाने वाले और महिलाओं का वस्तुकरण करने वाले गानों की वकालत करने से पहले हमें थोड़ा सोचना होगा।
Copyrighted information, for general consumption, do not use without permission. Publication stands for accurate, fair, unbiased reporting, without malice and is not responsible for errors, research, reliability and referencing. Reader discretion is advised. For feedback, corrections, complaints, contact within 7 days of content publication at newsip2005@gmail.com. Disputes will be under exclusive jurisdiction of High Court of Delhi.