रेल और सेल की साझेदारी से बनता नया हिंदुस्तान
नई दिल्ली, जब दो बड़े संगठन एक दूसरे का हाथ थामते हैं तो जन्म लेती है एक ऐसी कहानी जो आने वाली कई पीढ़ियों के सुनहरे भविष्य और सपनों को पूरा करती है। रेल और सेल की साझेदारी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसने देश के एक छोर से दूसरे छोर के लोगों को एक कर दिया है। पिछले 6 दशकों से रेल और सेल मिलकर देश के निवासियों को उनकी हर ज़रुरत के सफ़र के दौरान सबसे भरोसेमंद साथी साबित हुए हैं तो दूसरी तरफ माल ढुलाई के जरिये व्यापारिक गतिविधियों के बड़े साझेदारी के तौर पर भी हर समय मौजूद रहे हैं। अगर हम भारतीय रेलवे को देश के परिवहन के बुनियादी ढांचे का दिल कहें तो सेल देश की इस परिवहन की आत्मा है, जो रेलवे को रेल और फोर्ज्ड़ व्हील की सप्लाई करने वाला विश्वसनीय साथी है। यही नहीं सेल और रेल एक दूसरे के पूरक हैं। देश की बुनियादी विकास के इन दोनों साझेदारों ने अपने बेहतर तालमेल के जरिये हमारे देश के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सेल का छत्तीसगढ़ के भिलाई में स्थित भिलाई इस्पात संयंत्र देश को एक छोर से दूसरे छोर को जोड़ने वाले, विश्व स्तर के रेल का उत्पादन करता है और इसका पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में स्थित दुर्गापुर इस्पात संयंत्र रेलवे के डिब्बों, वैगनों और इंजनों के लिए भारत में एकमात्र फोर्ज्ड़ व्हील का उत्पादक है। जब रेल और सेल मिलते हैं तो देश का कोई न कोई किनारा किसी दूसरे किनारे से गले मिल रहा होता है और देश के हर किसी की ज़िंदगी से जुड़ रहा होता है।
सेल ने भारतीय रेलवे की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए, उनके अनुरूप न केवल उत्पादों का लगातार विकास किया है बल्कि कुछ मामलों में निर्धारित मानकों से भी आगे जाकर उत्पादन और आपूर्ति की है। सेल के रेल की आवश्यक मात्रा, गुणवत्ता और लंबाई को साल-दर-साल लगातार बढ़ (जो कि धीरे-धीरे 13 मीटर से 260 मीटर तक विकसित की गई है) रही है। इसी तरह से पिछले छह दशकों में भारतीय रेलवे को 720 मिमी से 1100 मिमी व्यास वाले विभिन्न आयामों के 18 लाख से भी अधिक पहियों की आपूर्ति की गई है। झारखंड के रांची में स्थित एशिया के सबसे बड़े रिसर्च एंड डिवलपमेंट फॉर आयरन एंड स्टील (आरडीसीआईएस) के शोध से पता चलता है कि सेल-भिलाई संयंत्र में रेल का उत्पादन करने की क्षमता है, जो 25 टन एक्सल लोड का भार सुरक्षा के सभी मानकों के साथ सहन कर सकता है और जिस पर कोई भी यात्री रेलगाड़ी 160 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से गुजर सकती है। मौजूदा समय में, सेल देश में 130 मीटर लंबाई की सबसे लंबी सिंगल पीस रेल का एकमात्र उत्पादक है। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) की एक विश्व स्तरीय परिवहन अनुसंधान और परीक्षण संगठन तथा एसोसिएशन अमेरिकन रेलरोड्स (एएआर) की पूरी तरह से स्वामित्व वाली एक सहायक संस्था ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजी सेंटर इंक (टीटीसीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार सेल-दुर्गापुर इस्पात संयंत्र में निर्मित व्हील अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं और ट्रेन परिचालन को उत्कृष्ट सेवा क्षमता प्रदान करते हैं।
सेल सुरक्षा के मानकों पर किसी भी तरह का समझौता किये बिना भारतीय रेलवे के ट्रैफिक की औसत गति को किफ़ायती लागत में बढ़ाने के प्रयासों के लिए प्रतिबद्ध है। उल्लेखनीय है कि भारतीय रेलवे द्वारा उपयोग की जा रही सेल के भिलाई इस्पात संयंत्र के रेल की गुणवत्ता और यूरोपीयसंघ (यूरोपियन यूनियन) द्वारा रेल यातायात में उपयोग की जा रही रेल की गुणवत्ता बराबर है। वास्तव में, यूरोपीय संघ द्वारा जिस गुणवत्ता के रेल का उपयोग 150 किमी / घंटा की गति के लिए किया जा रहा है, वह सेल द्वारा उत्पादित यूटीएस -90 रेल के बराबर ही है। सेल के दुर्गापुर इस्पात संयंत्र में उत्पादित व्हील्स ने देश के विभिन्न इलाकों और जलवायु में अपने उत्कृष्टता को साबित किया है और जिनका उपयोग 160 किलोमीटर/घंटा तक की गति के लिए किया जा रहा है। सेल अपनी रेल की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने पर लगातार काम कर रहा है। इसी दिशा में सेल ने रेल स्टील में हाइड्रोजन कंटेंट को वैश्विक बेंचमार्क 1.6 पीपीएम से भी कम करके रेल उत्पादन करने में सफलता हासिल की है। इसके अलावा सेल 110 यूटीएस रेल, थिक वेब असीमिट्रिकल रेल, वैनेडियम रेल और निकेल-कॉपर-क्रोमियम (एनसीसी) रेल सफलतापूर्वक विकसित कर रहा है। सेल के भिलाई इस्पात संयंत्र से देश के तटीय क्षेत्रों के लिए विकसित और आपूर्ति किए जा रहे जंग प्रतिरोधी एनसीसी रेल फील्ड ट्रायल सफलतापूर्वक पूरा कर चुके हैं। यही नहीं व्हील की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए, व्हील को हीट ट्रीटमेंट के साथ अत्याधुनिक विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से उत्पादित किया जाता है और कठोर प्रक्रिया और गुणवत्ता नियंत्रण उपायों के माध्यम से विकसित किया जाता है। इसके साथ ही प्रत्येक पहिये को अल्ट्रासोनिक परीक्षण और चुंबकीय कण निरीक्षण से गुजारा जाता जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह सब-सर्फ़ेस की खामियों से मुक्त है। व्हील की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हीट ट्रीटमेंट के प्रत्येक बैच से चयनित सभी व्हील को प्रतिरोधात्मक क्षमता परीक्षणों से गुजारा जाता है।
हाल ही में, सेल ने इन-हाउस संसाधनों से लिंके-हॉफमैन-बुश (एलएचबी) व्हील्स का विकास किया है, जिसकी पहली खेप भेजी जा चुकी है। सेल के दुर्गापुर इस्पात संयंत्र ने कालका-शिमला नैरो गेज रेल मार्ग को उसकी तत्काल जरूरतों के लिए नैरो गेज पहियों का विकास, उत्पादन और आपूर्ति प्राथमिकता के आधार पर किया है। इस तरह से सेल ने शिमला नैरो गेज रेल मार्ग की यात्रा को सुचारु रूप से चालू रखने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सेल ने कोलकाता मेट्रो के लिए भी पहियों का विकास और आपूर्ति की है, जिसका पहले आयात किया जाता था। इसके जटिल वेब प्रोफाइल के कारण इन पहियों की डिज़ाइन अलग और महत्वपूर्ण है।भारतीय रेलवे और सेल की साझेदारी ने देश की परिवहन की दुनिया को सहज, सरल और किफ़ायती बानने के जरिये देश के उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक के हर एक नागरिक को आपस जोड़ने के सपने को वास्तविक धरातल पर साकार करके दिखाया है। यह सफल साझेदारी, जो दशकों से देश को लगातार उन्नति के पथ पर अग्रसर करने में लगी हुई है, देश के विकास और नए भारत को गति देने के लिए हमेशा एक मजबूत ताकत बनी रहेगी।